Friday, October 16, 2020

बचपन की यादें

बचपन की यादों में 
पिता जी की उंगलियां
जिनके सहारे चला करता था 

बचपन की यादों में 
पिता जी की गोदी 
जिसमे आराम से बैठा करता था

बचपन की यादों में
पिता जी की थाली 
जिससे निवाले लिया करता था

बचपन की यादों में 
पिता जी की सायकल 
संग जिसमें बैठ घूमा करता था

बचपन की यादों में 
पिता जी की पुस्तकें
घंटो जिन्हें में पढ़ा करता था 

बचपन की यादों में 
पिता जी का रेडियो
बड़े चाव से जिसे मैं सुना करता था

बचपन की यादों में 
पिता जी का प्यार 
जिससे अभिभूत सदा रहता था

बचपन की यादों में 
पिता जी की शाबाशी
विश्वास जिससे बढ़ा करता था 

बचपन की यादों में 
पिता जी का आशीष
धन्य जिसे पाकर हुआ करता था 

मैं बड़ा होता रहा 
पर बचपन संग चलता रहा 
बचपन की यादें जुड़ती गईं 
बचपन भी बढ़ता रहा

पिता जी का साथ 
जीवन भर छूटता ही नहीं 
पिता जी गर साथ हों 
बचपन कहीं जाता नहीं 

ना कभी बचपन खत्म होता 
ना ही बचपन की यादें 
बचपन की यादों का
कभी अंत नहीं होता 

बचपन की यादों में 
मेरी उम्र का हर पड़ाव है 
 हर उम्र में क्यूंकि 
 बच्चा ही रहा हूं मैं 
 
 ......रजनीश (१६.१०.२०२०)
         परम पूज्य पिता जी की पुण्य तिथि पर 

Thursday, October 15, 2020

वक्त बीतता गया

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ जीतता गया 
कुछ भीतर रीतता गया 

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ जोड़ता गया
कुछ पीछे छोड़ता गया 

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ जुटाता गया 
कुछ यूं ही लुटाता गया 

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ निभाता गया 
कुछ रिश्ते भुलाता गया

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं कुछ अपनाता गया
कुछ मौके ठुकराता गया

वक्त बीतता गया
लम्हा दर लम्हा 
मैं सब को हंसाता गया 
कभी खुद को रुलाता गया 

वक्त बीतता गया 
लम्हा दर लम्हा 
मैं जीवन की बगिया
सींचता गया 
 वक्त बीतता गया 

..... रजनीश (१५.१०.२०२०, गुरुवार)

Monday, October 12, 2020

कुछ बातें इन दिनों की


जिंदगी रुक सी गई है
कदम जम से गए हैं 
एक वायरस के आने से
कुछ  पल थम से गए हैं 

कहीं  कब्र नसीब नहीं होती
कोई रातोरात जलाया जाता है
इंसानियत  शर्मसार होती है
उसे एक खबर बनाया जाता है 

कभी होती  नहीं हैं खबरें 
बनाई  जाती हैं
कभी होती नहीं जैसी
दिखाई जाती हैं 

जिसे समझा था दुश्मन
अल्हड़ बचपन का 
बन गया  लॉकडाउन  में
वो जरिया शिक्षण का

पास आने की चाहत
 पर दूर रहने की जरूरत
 किस ने कह दिया जिंदगी से
 मुसीबतें कम हो गई हैं ?

....रजनीश (१२.१०.२०२०, सोमवार)

Friday, October 2, 2020

मुसीबतें

रोज सोता हूं 
कुछ मुसीबतों को सिरहाने रख 
सुबह उठता हूं 
तो साथ हो लेती हैं मुसीबतें 
कुछ खत्म हो जाती हैं
कुछ नई जुड़ जाती हैं 
कुछ बनी रहती हैं साथ लंबे वक्त तक 
मुसीबतें भी रहा करती हैं 
सांसों , यादों और सपनों के साथ 

 मुसीबतें क्यों है इतनी
 एक जिंदगी में
 पग पग पर मुसीबतें 
 एक खत्म नहीं हुई 
 कि दूसरी शुरू
 जिंदगी जैसे बहता हुआ दरिया नहीं
 बल्कि मुसीबतों का पहाड़ हो
 मुसीबतें कुछ यूं जुड़ी रहती हैं 
 जैसे जनम जनम का नाता हो 
 
 
जिंदगी मिलने में मुसीबत
जिंदगी मिल जाने पर मुसीबत
जिंदगी के साथ मुसीबत
जिंदगी के  बाद मुसीबत

कभी धूप मुसीबत 
तो कभी छांव मुसीबत
कभी जंगल मुसीबत
तो कभी गांव मुसीबत 
 
कभी दिन का ना ढलना मुसीबत 
कभी दिन का ढल जाना मुसीबत
रास्ता ना मिलना एक मुसीबत 
कभी रास्ते का मिल जाना ही मुसीबत

एक मुसीबत हो तो मुसीबत 
कोई मुसीबत ना हो तो भी मुसीबत
मुसीबत हल ना होना एक मुसीबत
कभी मुसीबत का हल भी एक मुसीबत

कभी अकेली होती है मुसीबत
तो कभी उसके साथ सहेली
कभी बिन बुलाए चली आती है
कभी बुलाने से आती है मुसीबत

कभी कुछ मिल जाना मुसीबत 
कभी कुछ खो जाना मुसीबत
कभी साथ मुसीबत 
कभी अकेलापन मुसीबत

कुछ मुसीबतों का एहसास नहीं होता
कुछ मुसीबतों की आदत हो जाती है 
कुछ मुसीबतें जीने नहीं देती 
कुछ मुसीबतें जीना सिखा देती हैं

कुछ मुसीबतें झेल लेते हैं हंसते हंसते
कुछ मुसीबतों  से भागते हैं हम 
कुछ मुसीबतें खुशियां देती हैं
कुछ मुसीबतें रुला देती हैं

क्यूं होती हैं मुसीबतें 
ये सवाल ही एक मुसीबत 
फिर लगता है इतनी मुसीबतें है 
तो कोई मकसद तो होना चहिए इनका 

सोचता हूं ,क्या होता गर मुसीबतें ना होती 
जिंदगी एक मुसीबत बन जाती 
मुसीबत तो सांस लेने में भी है
मुसीबत नहीं तो सांस भी थमी

जीवन क्रिया है मुसीबत प्रतिक्रिया है 
जीवन गति मुसीबत प्रतिरोध है 
सांसों के अलावा जो जरूरी है 
जिंदगी के लिए वो है मुसीबतें
सांसें और मुसीबतें  जैसे चोली दामन 
बिना मुसीबतों के नहीं है जीवन 

नाम बुरा लगता है मुसीबत 
पर मुसीबतें बुरी नहीं 
मुसीबतें जरूरी है जिंदगी के लिए
दरअसल मुसीबत कोई मुसीबत ही नहीं !!

............रजनीश (०२ अक्टूबर, २०२०)

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