शुरू हुआ एक साल नया
बीती हैं कुछ ही रातें
सड़कें घर सब भीगे भीगे
रह रह होती बरसातें
है मौसम भूला राह
दबा उत्साह क्या होगा आगे
अन्ना दिशा गए भूल
छुपाए शूल इक रस्ता मांगे
शुरू हुआ एक साल नया
लाया चुनावी हलचल
नेता भटकेंगे गली गली
करेंगे सबकी मान-मुनव्वल
होगा सब कुछ वही
बात है सही काहे का रोना
पर लगे रहो मुन्ना भाई
नहीं है बुराई , अब न सोना
शुरू हुआ एक साल नया
अंदर-बाहर का खेल
कोई फंसा भंवरी के भंवर में
बड़े नित जाते जेल
सोच अपनी है यही
बात है सही उदास न रहना
बन जाएगी तक़दीर
है गर तदबीर प्रेम तुम सबसे करना ...
...रजनीश (08.01.2012)
21 comments:
संवेदनशील प्रस्तुति ..
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 09-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
बधाई
Beautiful Sir, the last two lines of the first paragraph are my favorite:)
bahot achchi lagi.....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
सटीक एवं सुन्दर प्रस्तुति,
बधाई...........
सुन्दर रचना... वाह!
bahut umda vyangatmak prastuti.nav varsh ki shubhkamnayen.
आप कि कविता आज के हालात का सही जायजा लेती है...अंतिम पंक्तियाँ बहुत सुंदर हैं.
बहुत सुन्दर......
बहुत खूब सर!
सादर
sundar bhaav........
बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति...
समसामयिक बातों को रचना में कहा है ..सुन्दर प्रस्तुति
सुंदर प्रस्तुति....
भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
kalamdaan.blogspot.com
सामयिक विषयों को बहुत अच्छी तरह समायोजित किया है, शुभकामनाएं.
कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .
Post a Comment