Sunday, March 18, 2012

कुछ दिल की ...कुछ रंगों की

छूट गए हर चेहरे से 
रंग होली के,
कुछ तो
यूं ही उतर गए
और कुछ रंगों को
देखा उतारते जबरन,
होली के कपड़े
रख दिये सबने
एक कोने में
साथ ही उस पर लगे
रंगों को भी दे दी
साल भर की कैद,

पर अब भी 
उतरी नहीं मेरी होली,
सब के संग
नाचने गाने और
मस्ती में सराबोर होने
का मन अब भी करता है
दिल के एक कोने में
गूँजती है फाग अब भी ,

सड़क पे भी
ज़िंदगी की आवाजाही
ने चंद दिनों में ही
मिटा दिये
होली के सब निशान,
हवा में भी
अब खुमार नहीं होली का
नहीं दिखता अब कोई
गले लगता और खिलखिलाता,
रंग लिए फिरता हूँ
पर कोई नहीं मिलता
जो बाहें फैलाए
अपने गाल आगे कर दे,
मैं रंगों को हवा में
उछाल कर खुद ही नहाता हूँ
और भटकता हूँ गली-गली
कि मिल जाए
कोई पागल मुझसा....
......रजनीश (17.03.11)

24 comments:

poonam said...

Mil jaye mujhsa pagal sa koi....bahut khub...

dinesh aggarwal said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति....

प्रवीण पाण्डेय said...

हर के मन में इतना रंग कहाँ, नीरवता श्वेत-श्याम है।

संगीता पुरी said...

वाह ..
बहुत सुंदर ..

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया सर!


सादर

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 19/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Kewal Joshi said...

'कोई नहीं मिलता ..बाहें फैलाए' ....
सुन्दर भाव.

मेरा मन पंछी सा said...

bahut sundar rachana,,,

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 19-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

मनोज कुमार said...

यथार्थबोध के साथ कलात्मक जागरूकता भी स्पष्ट है।

Madhuresh said...

Ameen! yunhi hi rango ki kaamna folibhoot hoti rahe!
Saadar

udaya veer singh said...

बहुत ही बढ़िया......

Amrita Tanmay said...

मन को इतनी आजादी तो है ही कि जब चाहे जिस भाव में रंग जाए . समय का मोहताज नहीं होता है .सुन्दर रचना .

ANULATA RAJ NAIR said...

सब रम जाते हैं अपनी अपनी जिंदगी में...और दिल ढूँढता है फिर वही,...रात दिन...

सुन्दर रचना.

सदा said...

वाह ...बहुत ही बढिया।

दिगम्बर नासवा said...

होली के असली रंग अब फीके हो चुके हैं ... दुनियादारी की मैल बढ़ गयो है ...

Saras said...

ऐसा अक्सर होता है ...हम लोग ख़ुशी के पलों को याद कर दुखी होते हैं और दुःख के पलों को याद कर सुखी ....सच्ची रचना!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुंदर प्रस्तुति ...... आज तो बस होली के दिन ही रंग खेल लिए जाएँ बहुत है ॥जीवन से आपस में रंगों का ( प्यार ) महत्त्व कम हो गया है ....

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुन्दर अभिव्यक्ति... वाह!

Minakshi Pant said...

सार्थक रचना | सही आंकलन लगाया आपने न जाने ये प्यार उस दिन इतना उमड़ता है जैसे कोई दूसरा है ही नहीं उसके बाद हर एक ऐसे दूर हो जाते हैं कोई अपना है ही नहीं बहुत सुन्दर प्रस्तुति |

Anupama Tripathi said...

अपने आप में रमता मन ..बहुत सुंदर भाव ....
शुभकामनाएं ...!

S.N SHUKLA said...

इस ख़ूबसूरत पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें.

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर.

कृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen पर भी पधारने का कष्ट करें.

Onkar said...

bahut sundar kavita

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....