कुछ लाइनें अधलिखी
कुछ बातें अनकही
कुछ रातें अकेली
रह जाती हैं
कुछ झरोखे अधखुले
कुछ लम्हे अधसिले
कुछ किताबें अनछुई
रह जाती हैं
कुछ कदम भटके
कुछ जज़्बात अटके
कुछ कलियाँ अधखिली
रह जाती हैं
कुछ ख़याल बिसरे
कुछ सपने बिखरे
कुछ मुलाकातें अधूरी
रह जाती हैं
रजनीश (03.04.2012)
10 comments:
सही लिखा हर चीज अधूरी ही रहती है..इसी अधूरेपन को तोड़ने का नाम तो जिन्दगी है....
बेहद तरतीब और तरक़ीब से अपनी बात रखी है।
चन्द्रमा भी एक माह में एक बार ही पूर्ण रहता है।
यही अधूरापन जिंदगी में मिठास के बरकरार रहने का रहस्य है...
बहुत सुन्दर बात कही है आपने ...
कभी हमारे यहाँ भी तशरीफ लाइए ...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 05-04-2012 को यहाँ भी है
.... आज की नयी पुरानी हलचल में ......सुनो मत छेड़ो सुख तान .
चाहे कितना भी पूरा करने का प्रयास करें कुछ न कुछ अधूरा रह ही जाता है ... सुंदर अभिव्यक्ति
बिसरे-बिखरे , आधे-अधूरे फिर भी लगता है ..हम हैं पूरे ..अतिसुन्दर..
अधूरापन भी एक हद के बाद भाने लगता है
कभी-कभी अधलिखा भी पूरा सा लगता है..... बहुत ही अच्छी अभिवयक्ति......
sidhi saral sundar kavita
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