ये चित्र - गूगल से , साभार |
महीना आया सावन का
बारिश का इंतज़ार
हम देख आसमां सोचते
कैसी मौसम की मार
रुपया चला रसातल में
डालर से अति दूर
क्या खर्चें क्या बचत करें
हालत से मजबूर
महँगाई सुरसा हुई
तेल स्वर्ण हुआ जाए
गाड़ी से पैदल भले
सेहत भी चमकाए
है यू एस में गुल बिजली
और जन-जीवन अस्त-व्यस्त
हुआ प्रकृति की लीला से
सुपर पावर भी त्रस्त
गॉड पार्टिकल खोज कर
इंसान खूब इतराए
गर हों तकलीफ़ें दूर सभी
तो ये बात समझ में आए
कहीं पर पब्लिक क्रुद्ध है
कहीं होता गृह युद्ध
इस अशांत संसार को
फिर से चाहिए बुद्ध
......रजनीश (04.07.12)
10 comments:
वाह ,यह रपट भी बहुत बढ़िया रही
वाह! बहुत सार्थक और यथार्थ रपट....
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,,,,बढ़िया दोहे,,,,,,
MY RECENT POST...:चाय....
bahut badiyaa....
bahut khub
बढ़िया निष्कर्ष है अव्वल पोस्ट है .शुक्रिया ज़नाब का .
ढूढ़ शान्ति ले आओ, तो आओ।
वाह...
बहुत बढ़िया..
ताज़ा ताज़ा रपट....
सादर
अनु
बहुत शानदार रचना
sundar panktiyan
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