Wednesday, July 11, 2012

दो दुनिया का वासी

मैं हूँ
दो  दुनिया  का वासी

एक जहां  है सभी असीमित
दूजे में जीवन लख-चौरासी

मैं हूँ दो  दुनिया  का वासी ...

एक जहां तुमसे मिलता हूँ
सांस जहां हर पल लेता हूँ
जिसमें मेरे रिश्ते-नाते
रोज जहां चलता फिरता हूँ

दूसरी  सपनों की है दुनिया
जिसमें मेरा मन रहता है
उसकी देखा-देखी की कोशिश
इस दुनिया में तन करता है

मैं हूँ
दो  दुनिया  का वासी ...

सपने गर अच्छे होते हैं
इस जहान में खुश रहता हूँ
दर्द वहाँ का मुझे गिराता
इस  दुनिया  में दुख सहता हूँ

जो सपनों की दुनिया में  बुनता
और यहाँ जो कुछ मिलता है
अंतर जो पाता हूँ  इनमें
वही राह फिर तय करता है 

मैं हूँ
दो  दुनिया  का वासी

एक जहां है  सपने रहते
दूजे में काबा - कासी

मैं हूँ
दो  दुनिया का वासी...
.......रजनीश ( 11.07.2012)

10 comments:

Anita said...

ये दो दुनियाएँ जब एक हो जाती हैं उसे ही मोक्ष कहते हैं और वही तो तलाश है हर एक की...

Shashiprakash Saini said...

वाह बेहतरीन पंक्तियाँ सुन्दर अभिव्यक्ति रजनीश जी

प्रवीण पाण्डेय said...

इन दोनों के बीच लहरता लहराता हूँ..

Arvind Mishra said...

दोनों जहां में जमे रहिये.मजे लूटिये -आमीन
बस इतना ख्याल रखियेगा इसमें किसी भी जहां में किसी से आशनाई मत कर बैठिएगा नहीं तो शायर कह बैठेगा -
दोनों जहां तेरी मुहब्बत में हारकर
वो जा रहा है कोई शबे गम गुजारकर

Kailash Sharma said...

बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति...सच में हर व्यक्ति दो दुनियां में रहता है...रचना के भाव दिल को छू गये...

Onkar said...

कैलाश जी ने सही कहा. हर व्यक्ति दो दुनियां में रहता है.सुन्दर प्रस्तुति.

महेन्‍द्र वर्मा said...

दोनों दुनिया के बीच समन्वय जरूरी है।

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर रचना...

सादर
अनु

रचना दीक्षित said...

दो दुनिया का बासी एक सपनों के लिये एक दुःख सहने के लिये. वाह कुछ अलग बात.

mridula pradhan said...

bahut achchi lagi......

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....