गुजरता जाता है वक़्त
वक़्त को पकड़ते-पकड़ते,
भूलता जाता हूँ अपनी पहचान
वक़्त को पहचानते-पहचानते,
खोता जाता है वक़्त
खोये वक़्त को समेटते-समेटते,
खुद से लड़ जाता हूँ
अपने वक़्त से लड़ते-लड़ते,
खुद उखड़ता जाता हूँ
भागते वक़्त को रोकते-रोकते...
जी लिया वक़्त को जिस वक़्त
बस वही वक़्त अपना होता है
वरना गुम जाती है आवाज़
बस वक़्त को पुकारते-पुकारते ...
. .....रजनीश (29.11.2012)
6 comments:
बहुत बढ़िया -
खुबसूरत प्रस्तुति ।।
वक्त से बतियाना,
जीवन सहज बहाना।
सुन्दर रचना
वक्त की नब्ज़ को खूब परखा है आपने। अच्छी रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें।
बेहतरीन
Ajeeb baat hai,kuch din pehle maine isi tarah ka kuch likha tha--padh kar bataiye kaisa laga
http://jeeteraho.blogspot.com/2013/02/ab-to-hum-aa-gaye-hain-raahon-mein-raah.html
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