हे सूर्य ! तुम्हारी किरणों से,
दूर हो तम अब, करूँ पुकार ।
बहुत हो गया कलुषित जीवन,
अब करो धवल ऊर्जा संचार ।
सुबह, दुपहरी हो या साँझ,
फैला है हरदम अंधकार ।
रात्रि ही छाई रहती है,
नींद में जीता है संसार ।
तामसिक ही दिखते हैं सब,
दिशाहीन प्रवास सभी ।
आंखे बंद किए फिरते हैं...
निशाचरी व्यापार सभी ।
रक्त औ रंग में फर्क न दिखे,
भाई को भाई न देख सके ।
अपने घर में ही डाका डाले,
सहज कोई पथ पर चल न सके ।
हे सूर्य ! तुम्हारी किरणों से,
दूर हो तम अब, करूँ पुकार ।
भेजो मानवता किरणों में,
पशुता से व्याकुल संसार ।
....रजनीश (15.01.11) मकर संक्रांति पर
मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल की हार्दिक शुभकामनाएँ । एक पुरानी रचना पुनः पोस्ट की है ।
10 comments:
लाजबाब,अभिव्यक्ति,,,
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
बहुत सुंदर स्तुति ...... हार्दिक शुभकामनायें
शुभकामनायें |
सुन्दर प्रस्तुति ||
महा मकर संक्राति से, बाढ़े रविकर ताप ।
सज्जन हित शुभकामना, दुर्जन रस्ता नाप ।
दुर्जन रस्ता नाप, देश में अमन चमन हो ।
गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो ।
मंगल मंगल तेज, उबारे देश भ्रान्ति से ।
गौरव रखे सहेज, महामकर संक्रांति से ।।
बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता.
लोहड़ी, पोंगल, मकर संक्रांति और बिहू की शुभकामनायें.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 15/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
आज बढ़े प्रभु उत्तरपथ,
हम भी चाहे कुछ उत्तर।
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♥सादर वंदे मातरम् !♥
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हे सूर्य ! तुम्हारी किरणों से
दूर हो तम अब, करूँ पुकार
भेजो मानवता किरणों में
पशुता से व्याकुल संसार
तथास्तु !
समस्त मानवता के कल्याण हेतु सुंदर प्रार्थना के लिए साधुवाद...
आदरणीय रजनीश जी !
पिछली पोस्ट की कविता भी अच्छी है ...
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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बहुत बढ़िया!
जीवनदाता सूर्य को नमन!
हे सूर्य! तुम्हारी किरणों से,
दूर हो तम अब करून पुकार.
भेजो मानवता किरणों में,
पशुता से व्याकुल संसार.
सुंदर प्रार्थना. मेरी भी यही कामना है.
वाह, बहुत सुन्दर रचना
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