( साल भर पुरानी कविता पुन: पोस्ट कर रहा हूँ )
बहता है पसीना
तब सिंचती है धरती
जहां फूटते है अंकुर
और फसल आती है
बहता है पसीना
तब बनता है ताज
जिसे देखती है दुनिया
और ग़ज़ल गाती है
बहता है पसीना
तब टूटते है पत्थर
चीर पर्वत का सीना
राह निकल आती है
बहता है पसीना
तब बनता है मंदिर
चलती है मशीनें
जन्नत मिल जाती है
जो बहाता पसीना
जो बनाता है दुनिया
उम्र उसकी गरीबी में
क्यूँ निकल जाती है
....रजनीश (01.05.2012)
अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस पर
अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस 1 मई को पूरे विश्व भर में मनाया जाता है ।
International Workers' Day is the commemoration of the 1886 Haymarket affair in Chicago
The first May Day celebration in India was organised in Madras
by the Labour Kisan Party of Hindustan on 1 May 1923
(जानकारी विकीपीडिया से साभार ...)
2 comments:
विश्वगति पसीने का ही प्रवाह है..
उत्तर चुप है..
Post a Comment