दर्पण झूठ ना बोले, पर दर्पण
सच भी तो ना बोले
दिखाता है दर्पण, सच का
उतना ही छोर
जो हो दर्पण के
सामने, और हो दर्पण की ओर
पर दाएँ की जगह
बायाँ, और बाएँ की जगह दायाँ
दिखता है कुछ उल्टा , ये है दर्पण की माया
दिखता है कुछ उल्टा , ये है दर्पण की माया
दर्पण के पीछे
का सच, क्या कभी दर्पण दिखाता है
इसके पीछे चले
जाने से, सामने का क्यूँ छिपाता है
दर्शक की आँखों
पर, होता सारा दारोमदार है
जिसे पता होती
है असलियत, गर वो समझदार है
कि जो दिख रहा
दर्पण में, वो आभासी है अपूर्ण है
जो छुपा है मिलाकर
उसे ही, हर कथा होती पूर्ण है
देखना होता है
वह भी, जो दर्पण में नहीं
पूरा चित्र पूरा
सच, उभरता है तब कहीं
बड़ा क्लिष्ट है
सच, जैसी है ये सृष्टि
सच देखना हो तो, होनी चाहिए दिव्य दृष्टि
संजय को मिला था
जिम्मा, संजय को देखना था सच
धर्म-अधर्म की
लड़ाई का,धृतराष्ट्र को बताना था सच
वो पूरी लड़ाई का एक सूत्रधार था
इस दुनिया में
आया पहला पत्रकार था
जब तक थी दिव्य
दृष्टि , संजय सब कुछ देख सका
सच का किया बखान,पीत पत्रकारिता
से बच सका
न गलत बयानी की, न अनर्गल बात कही
सच सुनाता रहा, जब तक दिव्य दृष्टि रही
ख़त्म हुई लड़ाई, ख़त्म हुई कहानी
ख़त्म हुई रिपोर्टिंग, संजय की जुबानी
धर्म की लड़ाई दिखाने,धर्म जानना भी जरूरी है
दिव्य दृष्टि की आज़ादी संग, ज़िम्मेदारी भी जरूरी है
पत्रकारिता है
सेवा, ये कोई व्यापार नहीं है
अधूरे सच को बेचता, ये कोई
बाज़ार नहीं है
हो रही हैं लड़ाइयाँ, हम कितने गंदे हो गए है
संजय भी है जरूरी, क्यूंकि हम अंधे हो गए हैं...
........रजनीश (03.05.2013)
पत्रकारिता एवं प्रेस की आज़ादी पर
3 मई को यू.एन.
द्वारा World Press Freedom Day
or World Press Day घोषित किया गया है । इसके मुख्य उद्देश्यों
में
प्रेस की स्वतन्त्रता के संबंध में जागरूकता फैलाना शामिल है
। इसी दिन 1991 में अफ्रीकी पत्रकारों द्वारा
प्रेस की स्वतन्त्रता पर बनाए गए विंडहोक (Windhoek Declaration) को adopt किया गया था ।
(जानकारी वीकिपीडिया से साभार) )
यतः सत्यं यतो धर्मो यतो ह्रीरार्जवं यतः।
ततो भवति गोविन्दो यतः कृष्णस्ततो जयः।।
ततो भवति गोविन्दो यतः कृष्णस्ततो जयः।।
जहाँ सत्य है, जहाँ
धर्म है, जहाँ ईश्वर-विरोधी कार्य में लज्जा है और जहाँ हृदय
की सरलता होती है, वहीं श्रीकृष्ण रहते हैं और जहाँ भी
श्रीकृष्ण रहते हैं, वहीं निस्सन्देह विजय है।
11 comments:
कोई हो जो सच बतलाये..
These days we have so many sanjay..
but they lack the character n thought police the real Sanjay had :)
सच देखना हो तो होनी चाहिए दिव्य दृष्टि ,,
RECENT POST: मधुशाला,
बहुत सही कहा है आपने, संजय जैसी दृष्टि चाहिए सच के पारखी को..
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(4-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति !
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
latest post परम्परा
पर क्या आज संजय भी नहीं बदल जायेगा !
कृष्ण जैसा नीतिज्ञ और निर्लिप्त सूत्रधार भी कहाँ है ?
पत्रकारिता पर सुन्दर प्रस्तुति
दर्पण की भी अपनी सीमायें हैं.
बेहतरीन प्रस्तुति.
बहुत जरुरी है..
Post a Comment