Saturday, January 24, 2015

दरअसल ....



















था न कोई उस राह , पर इंतजार हम करते रहे
उनको हमसे नफ़रत सही , पर प्यार हम करते रहे    

वक़्त की ख़िदमत में , अक्ल-ओ-दिल से लिए फैसले
और किस्मत के नाम , हर अंजाम हम करते रहे

रिश्ता निभाने खुद को भुला देने से था परहेज़ कहाँ  
बस रिश्ता बनाने का जतन हम करते रहे

बसा जो दिल में था उसे क्या भूला क्या याद किया  
बस खोए हुए दिल की तलाश हम करते रहे

क्या कहें क्या अफसाना क्या मंज़िल क्या ठिकाना
बस एक सफ़र की गुजारिश हम करते रहे

............रजनीश (24.01.15)

3 comments:

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

Onkar said...

बहुत सुन्दर रचना

डॉ. मोनिका शर्मा said...

Bahut Umda

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....