दीवाली
जब आ रही थी
तो हर गली -मोहल्ले
हर घर-चौराहे
कहीं भी खड़े हो
सुन सकता था आहट
कि आ रही थी दीवाली
हवा में मीठी महक
हर चेहरे में थी ललक
हर कहीं रोशनी की चमक
हर दिन तेज होती पटाखों की धमक
रंगोली के रंग सजा
हर घर का दरवाजा
करता था इशारा
कि आ रही है दीवाली
फिर दीयों की लड़ियाँ लिए
हाथ में फुलझड़ियाँ लिए
लक्ष्मी को संग लिए
खुशियाँ उमंग लिए
आ गई दीवाली
कब से इंतज़ार था
मन में खुमार था
कब से दिल तैयार था
तो खूब जिया दीवाली
स्वागत में लक्ष्मी के
दिये जले
पटाखे चले
मिठाई बंटी
गले मिले
फिर सो गया थक कर
मैं क्या सारा शहर
पटाखों की गूंज
घुस गई सपनों में
धीमी होकर
खत्म हुआ तेल
सो गए दिये बुझकर
हवा में बसी बुझे दीयों की गंघ
और बेहिसाब चले पटाखों का धुआँ
नींद खुली सुबह तो एहसास हुआ
कि जा चुकी थी दीवाली
मुझे लगा था कुछ दिन तो रहेगी
कितनी तैयारियां की थीं
कितना इंतज़ार किया था
और अब हर गली मोहल्ले
हर घर चौराहे में चीखते निशान
कि जा चुकी थी दीवाली
आखिर रुकती क्यों नहीं
कुछ दिन थमती क्यों नहीं दीवाली
शोहरत से नहीं पैसों से भी नहीं
शायद न ऐसी हमारी किस्मत
और ना ही ऐसी फितरत
ऐसा हमारा दिल ही नहीं
हम ही नहीं रोकते उसे
हर दिन हर हाल में
हम नहीं मना सकते दीवाली
और हर साल चली जाती है दीवाली
शुक्र है कि हर साल आ जाती है दीवाली
और गर दिल से बुलाओ तो
किसी भी दिन आ जाती है दीवाली
....रजनीश (22.11.15)
3 comments:
सुन्दर रचना
बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति। दीपावली की आपको बधाई।
बहुत सुंदर रचना । मेरी ब्लॉग पर आप का स्वागत है ।
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