खुद से पूछ लिया
करते क्या हो आखिर
तुम दिन भर
सवाल वाजिब था
जवाब भी मुश्किल
क्या करता रहता हूं
मैं आखिर दिन भर
ना सब दिन समान
ना इसके हर घंटे इक जैसे
फिर करता क्या रहता हूं
बताऊं तुम्हें कैसे
कुछ शब्दों में
जीवन भर की कहानी
बखान करने
समेटूं इसे कैसे
भीतर उतर के फिर
मैंने यह जाना
ये कुछ और नहीं
बस संघर्षों का अफसाना
मैं ये करता रहता हूं
कि बस लड़ता रहता हूं
लड़ाई भीतर भी होती है
लड़ाई बाहर भी होती है
लड़ाई अस्तित्व की
खुद को बचा रखने की
लड़ाई खुद से भी होती है
लड़ाई औरों से भी होती है
लड़ाई जीवाणु से
लड़ाई विषाणु से
लड़ाई कीटाणु से
लड़ाई रोगाणु से
लड़ाई आबो हवा से
लड़ाई हालातों से
लड़ाई महामारियों से
लड़ाई बीमारियों से
तन को बचना है
वैसे ही मन को भी
तन भी लड़ता है
मन भी लड़ता है
लड़ाई तन की है
और लड़ाई मन की भी
रोगाणु तन को सताते हैं
हालात मन को सताते हैं
तन के विषाणु हैं
और मन के भी
तन के लिए वैक्सीन हैं
और मन के भी
पर हर मर्ज के लिए
वैक्सीन नहीं होता
सिर्फ वैक्सीन के सहारे
तो तैयारी अधूरी है
लड़ाई तन की हो
या लड़ाई मन की
खुद को बचाए रखने के लिए
इम्यूनिटी जरूरी है
.....रजनीश (३०.१०.२०२०, शुक्रवार)
6 comments:
सच है।
बिल्कुल सही।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 01 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 01 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाहः
हल ज्ञात है तो समस्या की क्या बिसात है
बहुत बढ़िया
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