Friday, April 22, 2011

शीर्षक

021209 203
अगर  कोई शीर्षक
ना दिया होता 
तो क्या तुम इसे नहीं पढ़ते ?
और अगर पढ़ लेते
फिर जरूरत ही क्या
तुम्हें शीर्षक की ?
क्या तुम तय करते हो इससे ,
पढ़ना या  ना  पढ़ना ?
पर शीर्षक , कोई कविता तो नहीं
उसका एक अधूरा, अत्यल्प आभास है,
वो तो दीवार पर लगी एक तख्ती भर है,
जो बताती है कि यहाँ पर लगा है
जज़्बातों का अनंत ढेर,
इसे खँगालो और अपना मोती ले जाओ ..
शीर्षक पर मत जाओ
वो तो बस एक नाम ही है ...
...रजनीश (21.04.11)

5 comments:

विभूति" said...

bhut hi accha abhiyakt kiya hai apne...

Unknown said...

शानदार लिखा है आपने. बधाई स्वीकार करें
मेरे ब्लॉग पर आयें और अपनी कीमती राय देकर उत्साह बढ़ाएं
समझ सको तो समझो : अल्लाह वालो, राम वालो

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर्।

mridula pradhan said...

इसे खँगालो और अपना मोती ले जाओ .......wah....bahut sundar.

Amit Chandra said...

सर जी नाम में भी तो बहुत कुछ रखा होता है। खुबसुरत रचना।

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....