एक नज़्म लिखी थी
उस पन्ने पर
जो दिल में
कोरा पड़ा था
पर कुछ शब्द
नहीं थे पास मेरे
कुछ लाइनें अहसासों में
अटक गईं थीं
लिखते लिखते ही
पन्ना गुम
गया था रद्दी में
कलम भी खो गई थी
हिसाब-किताब में
पलाश फिर दिखा
खिड़की से
रद्दी से फिर
हाथ आ गया
वही पन्ना
उस नज़्म के दिन
लौट आए हैं ...
रजनीश (13.02.2012)
11 comments:
प्रकृति भी अपना सफेद रंग तज रही है...वाह..
उस नज़्म के दिन
लौट आए हैं ... बहुत खूब्।
बहुत खूब सर!
सादर
बहुत सुन्दर....
दोनों हाथों से समेट लिया जाये इन दिनों को..
बहुत सुंदर रचना...
बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
adhoori nazm ka bhi alag hi mazaa hai sirji :)
palchhin-aditya.blogspot.in
सुंदर भाव ....
Khoobsoorat abhivyakti hai!
खूबसूरत नज़्म
wah....bahut sunder.
Post a Comment