Saturday, April 28, 2012

कैमरा













एक कतरा दर्द
खोल झरोखा पलक का
छोड़ दिल का साथ
कोरे कागज़ पर टपकता है

एक चाहत की बूंद
गुलाब की पंखुड़ी से फिसल
ओस का चेहरा लिए
जमीं से जा मिलती हैं

खुशियों के इंद्रधनुष
रंगते हैं आसमां को
ढलते सूरज के साथ दाना लिए
एक पंछी लौटता है अपने घर
चाँद  साथ तारों के
खिड़की के करीब आता है
करने दूर तन्हाई
एक लंबी रात में

कैद हो जाते हैं
ये सब मंज़र
एक अंधेरे घर में
पीछे इक काँच के
हूबहू वैसे ही जैसा उन्हें देखा था

तस्वीरों का ये घर
दिल जैसा तो नहीं दिखता
पर जब भी इस घर से
तस्वीरों को निकाल के देखता हूँ
याद आ जाती है दिल की एक पुरानी धड़कन
और लौट आते हैं कुछ पुराने अहसास

हर तस्वीर के भीतर होती है
एक दिल की तस्वीर
जो छुपी होती है कहीं पर
एक नज़र देख लेने भर से 
सांस लेने लगती है
कैमरा अहसासों को सँजोता है
जब एलबम पलटता हूँ
तो सारी तस्वीरों में होता हूँ
बस मैं ही
मेरा ही कोई हिस्सा ...
.....रजनीश (28.04.2012)


12 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

उस पल में कितना कुछ छिपा रहता है, सब अपने में समेट लेता है कैमरा।

Onkar said...

sundar rachna

रचना दीक्षित said...

यादों का सिलसिला दिल की धड़कने बढ़ाने के लिये पर्याप्त है. सुंदर प्रस्तुति हर बार की तरह ही.

indu chhibber said...

camera----kabhi dost ,kabhi dushman.

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर वाह!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-865 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ

महेन्‍द्र वर्मा said...

यादों के महाग्रंथ के हर एक पृष्ठ पर स्वयं को देख लेना कितना सुखद होता है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

तस्वीरें बोलती हैं ...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

Anita said...

दिल का कैमरा अहसासों को भी पकड़ लेता है.. सुंदर रचना !

ANULATA RAJ NAIR said...

यादें संजोये रखती हैं तस्वीरें......
वरना स्मृतियाँ तो वक्त के साथ धुंधला ही जाती हैं....

सादर.

M VERMA said...

दिल के कैमरे से दिल के अक्स उभरते हैं

Akhileshwar Pandey said...

फोटोग्राफी पर पहली बार कविता पढ़ी. कमाल का लिखा है. बहुत-बहुत बधाई.

विभूति" said...

जब एलबम पलटता हूँ
तो सारी तस्वीरों में होता हूँ
बस मैं ही
मेरा ही कोई हिस्सा ...behtreen andaaz ek alag tarah ki khubsurat rachna.....

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