एक ऐसी दौड़
जिसमें शामिल हैं सभी
ऐसी दौड़ का
जिसकी ना शुरुआत का पता है
ना ही इसकी मंज़िल का
मैंने भी कहीं से शुरू किया
और पहुंचूंगा किसी जगह
पर दौड़ का रास्ता तय नहीं
सब अपनी अपनी सलीब लिए
अपने अपने रास्तों में
बदहवासी में
बस दौड़े चले जाते हैं
टकरा जाते है
भिड़ भी जाते हैं
जहां रास्ते कटते हैं
या फिर वहाँ
जहां रास्ते मिल जाते हैं
और जगह नहीं होती
साथ दौड़ने की
कई लोगों को देखा है
हाँफते हुए खुद को समेटते हुए
और तेजी से दौड़ते
गिरते पड़ते खुद को संभालते
औरों को रौदते
दौड़ लगाते
पर सभी दौडते दौड़ते ही खप गए
दौड़ तो पूरी नहीं हुई
अब तक
किसी ने कहा
तुम जिस रास्ते पर दौड़ रहे हो
तुम्हें इसी में ही दौड़ना था
पर कब तय हुआ ये
मुझे तो लगा जैसे
किसी ने समय दिया है मुझे
कि इस अंतराल में
जिधर दौड़ना चाहते हो
जिस ओर भी दौड़ लो
बस दौड़ सकते हो तुम
हालांकि कितना समय
ये मैं नहीं जानता
एक अजीब सी बेचैनी
एक रहस्य एक रोमांच
एक ऐसी दौड़
जो हर तरफ हर समय
हर कहीं चलती है
एक अंधी दौड़
रह भी नहीं सकता
एक जगह लगातार
दौड़ते हुए मैंने देखा
कि मेरा मुक़ाबला भी मुझसे ही है
मैं खुद दौड़ता हूँ
अपने आप को दौड़ाना
मेरी नियति है ....
......रजनीश (26.06.12)
7 comments:
जिंदगी एक दौड़ ही है कभी जय कभी पराजय परन्तु दौड़ यथावत चालू है.
सुंदर प्रेरक कविता.
बस सब दौड़ रहे हैं ..... अच्छी प्रस्तुति
बहुत सटीक चित्रण आज के जीवन की आपाधापी का ....
रुक कर सोचने में पीछे छूट जाने का भय है..दौड़ते हुये ही सोचना होगा..
बहुत गहन चिंतन...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति...बधाई!!
bahut achchi lagi.
Post a Comment