Saturday, January 5, 2013

इक आस














एक रोशनी
बुझते बुझते
एक आग दे गई
दरिंदगी से लड़ती
एक आवाज़ दे गई

खो गई
कहीं आसमां में
इक राह दे गई
हैवानियत ख़त्म करने की
एक चाह दे गई

जूझती रही
बिना थके
दुनिया हिला गई
अत्याचार से लड़ने
कई दिल मिला गई

ना खत्म हो ये जज़्बा
ये सैलाब रुक ना जाए
इक शहादत से जली
ये मशाल बुझ न पाए... 
....रजनीश (05.01.2013)

13 comments:

Kailash Sharma said...

बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...इस लौ को जलाये रखना है...

poonam said...

man ko jhkjorti rachna....aag jalti rahni chaiye....

प्रवीण पाण्डेय said...

आस देश की जीवित अब भी, व्यर्थ नहीं जायेगा कुछ भी।

रचना दीक्षित said...

यह बलिदान बेकार नहीं जाने देना है यह हम सभी की जिम्मेदारी है.

Anita said...

सचमुच इस बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देना है..इस मशाल को जलाये रखना है

Onkar said...

इस आक्रोश का कोई परिणाम निकलना चाहिए

विभूति" said...

सशक्त और प्रभावशाली रचना.....

Asha Lata Saxena said...

गहरे भाव लिए रचना |बहुत सुन्दर और संदेशात्मक |
आशा

ओंकारनाथ मिश्र said...

ज्वाला प्रज्ज्वलित रहने की ज़रुरत है. सुन्दर रचना.

Naveen Mani Tripathi said...

behad prabhavshali prastuti badhai ke sath abhar bhi

mridula pradhan said...

aisa hi ho......

मेरा मन पंछी सा said...

मर्मस्पर्शी रचना...

avanti singh said...

umda rachna

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....