सपनों की फेहरिस्त
लिए
रोज़ चली आती है रात
गुजार देते है उसे, ढूंढते
फेहरिस्त में अपना
सपना
कुछ तारों को तोड़ रात
कल सोये साथ लेकर हम
गुम हुए सुबह की धूप में
जैसे गया था बचपन अपना
हर गली से गुजरते
जाते हैं
लिए हाथों में तस्वीर
अपनी
अपनों के इस वीरान
शहर में
बस ढूंढते रहते हैं
कोई अपना
कुछ दिल उतर आया था
लाइनों में बसी
इबारत में
लिफ़ाफ़े पर कभी उसका
कभी पता लिख देते
है अपना
चलते हैं कहीं
पहुँचते नहीं
थका देते ये पथरीले
रस्ते
रस्ता ही तो है वो
मंज़िल
ज़िंदगी है हरदम चलना
......रजनीश (26.02.2013)
5 comments:
सच है रास्ता ही मंजिल है...... बहुत सुंदर
रात जब भी गहराती है, बहुत डराती है।
मुसाफिर है हर इंसान और यात्रा है जिंदगी..सुंदर भाव !
सच, जीवन चलने का नाम
सपनों की फेहरिस्त लिये
रोज चली आती है रात
गुजार देते है उसे ढूंढते
फेहरिस्त में अपना सपना.
बहुत सुंदर भावपूर्ण कविता.
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