साफ़ नीले आसमान में
सफ़ेद चमकते उड़ते रुई से बादल
और बादलों से छन कर आती
सूरज की इठलाती सुनहली किरणें
किसी चित्रकार की जादुई तूलिकाओं की तरह
जमीन, पहाड़, जंगल, नदी, सागर पर चलती हैं
और शुरू हो जाता है रंगों का नृत्य
अठखेलियाँ खेलते नाचते रंग
तरह-तरह का आकार लिए
फूलों में, पेड़ों में , पक्षियों
में, पशुओं में...
धरती पर फिरते , नदियों में तिरते, आसमां
में उड़ते
अनगिनत रंगों का सम्मेलन ...
आनंद और खूबसूरती का एहसास
इस माहौल में थिरकते कदमों को सम्हालते
जेहन में कौंधते एक प्रश्न से गुफ़्तगू करता हूँ
क्यूँ है रंगों का ये अद्भुत प्रयोजन ?
क्यूँ है ये इंद्र्धनुष ?
है क्या सिर्फ मुझे खुश करने के लिए ?
क्या ये अच्छे हैं सच में या मुझे लगते हैं अच्छे ?
फिर पूछा तो कहा एक लाल फूल ने
तितली के लिए है मेरा रंग
कहा पीले फूल ने
मैंने बदला लाल भेष
कि तितली पहुंचे मुझ तक भी,
कहा चटखते रंग लगाते एक चिड़े ने
कि बांधना चाहता है वो
इन रंगों की डोर से संगिनी को,
कोई खींचता अपना भोजन
एक रंग-बिरंगे पाश में,
कोई रंगों की चादर ओढ़
बचाता शिकारी से खुद को,
इस रंग भरे अनवरत नृत्य में
सौंदर्य के एहसास के साथ
दिखने लगी एक होड़, एक जुगत, एक तरकीब,
एक जंग, एक प्रतियोगिता
सब लड़ रहे अपनी-अपनी लड़ाई
अपने आप को बचाए रखने की....
सुंदरता इन रंगों में इन आकृतियों में नहीं
इन आँखों में हैं जो
नाचते देखती रहती हैं ,
इस लगातार चलती अस्तित्व की लड़ाई में
सौंदर्य, लगाव, आकर्षण
सबको बांधे रखते हैं मैदान में,
नहीं रुकता ये संग्राम कभी,
एक फूल की जगह लेता दूसरा
बहता और बदलता रहता है पानी
बदलते रहते है किरदार
पर रंग बने रहते हैं यहाँ , रंग नहीं बदलते ,
चलता रहता है खेल रंगों का ...रंगों की जंग ..
सौंदर्य से हटकर थोड़ा खिन्न हो जाता है मन
एक लंबी सांस ले दौड़ाता हूँ नज़र चारों ओर
और कदम फिर अपने आप थिरकने लगते हैं ....
....रजनीश (14.07.2013)
6 comments:
मानो तो जंग है नहीं तो प्यार के रंग हैं...सुंदर कविता !
सच! रंग नहीं बदलते..
bahut sunder
जीवन के रंगमंच पर कलाकार बदलते हैं , जीवन वही रहता है ,जैसे सौन्दर्य एक फूल से दुसरे फूल तक !!!
जंगी नहीं, रंगी प्रतिस्पर्धा..
Mana ke rungo me ummang h......
Magar
Jung me sirf ek hi rung h .......... lahoo
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