Monday, September 30, 2013

अब ...क्या कहें


प्यार क्या है , क्या कहें
तकरार क्या है , क्या कहें

राह सूनी, ना पैगाम कोई  
इंतज़ार क्या है , क्या कहें

हैं ना वो, ना तस्वीर उनकी
दीदार क्या है, क्या कहें

थोड़ी फकीरी , है मुफ़लिसी भी
बाज़ार क्या है, क्या कहें

दुश्मन नहीं, ना दोस्त कोई
तलवार क्या है, क्या कहें

दिल में दर्द, है सर भी भारी
बीमार क्या है, क्या कहें

घर नहीं, ना शहर कोई
दीवार क्या है, क्या कहें

जुबां कहती, निगाहें चुप हैं
इज़हार क्या है, क्या कहें

हर गली बस बैर मिलता
प्यार क्या है, क्या कहें 
......रजनीश (30.09.13)

6 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

परिभाषायें अपना यथार्थ खोती जा रही हैं।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत ही बढ़िया,सुंदर गजल !

RECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सच में विचारणीय प्रश्न ......

Vandana Ramasingh said...

बहुत बढ़िया

Onkar said...

सुन्दर ग़ज़ल

Rose said...

nice ...very nice feeling

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....