[1]
डांस-बार फिर खुले अगर
वही होगा जो पहले देखा श्लील-अश्लील के बीच कहाँ पर खींचें लक्ष्मण-रेखा
[2]
कल के सपने बुन रहा है बिहार अभी चुन रहा है वादे बकझक सुन रहा है बिहार अभी चुन रहा है
[3]
फिर कुछ सुबहें खास हो गईं अपनी मैगी पास हो गई
[4]
सेल-डील के चक्कर में, गए अकल लगाना भूल अक्टूबर के महीने में यारों, बन गए एप्रिल-फूल
[5]
आग लगी हो घर हमारे तो कौन दुआरे आयेगा हमारी खुशियों की खातिर क्यूं अपने हाथ जलायेगा
..........रजनीश (18.10.2015)
3 comments:
बहुत सुंदर प्रस्तुति
अर्थपूर्ण क्षणिकाएँ..
वाह एक दम ताज़े विषय रजनीश जी. सुंदर और सामायिक.
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