छोटे हो गए दिन अब लंबी ठंडी रातें एक साल की बिदाई नए साल की बातें
[2] प्रदूषण और सम विषम
बारह बजने को हुए रात , बॉर्डर दिल्ली का किया पार अब करना कार से वापस घुसने दिनभर का तुम इंतज़ार
[3] प्रदूषण और सम विषम
तुम्हारी कार सम और मेरी है विषम, आज चलूँ मैं कल चलो तुम इस आज-कल में थोड़ा भ्रम थोड़ा गम ,क्या होगा प्रदूषण कम
[4] प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग
मत उड़ा हर फिक्र को तू धुएँ में मेरे यार खतरा है ग्लोबल-वॉर्मिंग का बन जा समझदार
[5] फ्रांस
दहली फिर मानवता देखो धमाकों और चीत्कारों से मिट न सकेंगे ये धब्बे काले दिल की रोती दीवारों से
.......रजनीश ( 12.12.15)
3 comments:
सामयिक रचना
मौसम के मिजाज को दर्शाती सुंदर पंक्तियाँ..
Umda Panktiyan
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