मील का पत्थर होता नहीं है
और कोई हम सफर भी मिलता नहीं है
फिर भी इन रस्तों पर
भटकते-बिखरते
क्या जाने कदम क्यूँ चलते जाते हैं
एक पन्ने पर
जो लिखा है वो बदलता नहीं है
नया कोई पन्ना भी मिलता नहीं है
फिर भी कुछ किताबों को
पन्ने दर पन्ने
क्या जाने नयन क्यूँ पढ़ते जाते हैं
एक सपने में
जो गाया वो सच होता नहीं है
जो सपने मे पाया वो मिलता नहीं है
फिर भी कुछ सपनों को
जागते और सोते
क्या जाने हम क्यूँ देखते जाते हैं
मतलबी शहर में
कोई अपना होता नहीं है
ढूँढने से भी हमदम कोई मिलता नहीं है
फिर भी एक पते को
दर-दर खोजते
क्या जाने हम क्यूँ पूछते जाते है
.......रजनीश (24.01.16)
3 comments:
बढ़िया ।
फिर भी आशा है, हम जीवन में सबसे आस लगाये रहते हैं।
वाह , मंगलकामनाएं आपको !
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