धरती काँपती है ,
हर तरफ होता विनाश साक्षी है ।
दिन में ,
कुछ पलों के लिए
मैं भी जमीन पर होता हूँ,
पर कभी महसूस नहीं हुआ,
जमीन का तनाव, वो कंपन ।
कल कान लगाकर
सुनने की कोशिश की
धरती की धड़कन,
बस अपनी ही ध्वनि सुन सका ।
पर, शांति के इस समुद्र का तल
अशांत पत्थरों का घर क्यूँ है ?
धरती अधूरी है अभी ,
अजन्मी, अर्धविकसित,
तभी तो भीतर ये हलचल है ।
कुछ अभी तक अधूरा ।
क्यों ,मेरे अंदर भी
ढेर सारा और दबा हुआ
लावा है ? क्यूंकि मैं भी
इसी धरती का पुत्र हूँ ?
इसका अंश , पूरा-पूरा धरती जैसा ,
मैं भी तो अभी गर्भ में हूँ ।
उसी अधूरेपन, उसी अपूर्णता
का रोपण इसकी छाती
पर भी करता हूँ ।
अपनी दुनिया बसाता हूँ,
एक अस्थिर नींव पर
अधूरा, अशक्त मकान बनाता हूँ
और करता रहता हूँ असफल कोशिश
अपनी नश्वरता को पोषित
करने की इस घर में ।
बस एक आशा है ..
जब धरती बन जाएगी पूरी,
तब नदी कभी गांव में नहीं आएगी,
सागर तांडव नहीं करेगा ,
झील गुम नहीं होगी,
पहाड़ चलना बंद कर देंगे,
हरी-हरी चादर को नहीं जलाएगा लावा,
कोई घर भी नहीं टूटेगा,
और फिर मेरा जन्म होगा ,
एक शांत, संतुष्ट और सम्पूर्ण मैं ...
..रजनीश (15.03.2011)
5 comments:
बस एक आशा है ..
जब धरती बन जाएगी पूरी,
तब नदी कभी गांव में नहीं आएगी,
सागर तांडव नहीं करेगा ,
झील गुम नहीं होगी,
पहाड़ चलना बंद कर देंगे,
हरी-हरी चादर को नहीं जलाएगा लावा,
कोई घर भी नहीं टूटेगा,
और फिर मेरा जन्म होगा ,
एक शांत, संतुष्ट और सम्पूर्ण मैं ......
बहुत सुन्दर कामना...
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी कविता...
संवेदनाओं से ओतप्रोत इस कविता के लिए आपको हार्दिक बधाई।
बेहद उम्दा अभिव्यक्ति…………सुन्दर कामना के साथ्।
बस एक आशा है ..
जब धरती बन जाएगी पूरी,
तब नदी कभी गांव में नहीं आएगी,
सागर तांडव नहीं करेगा ,
झील गुम नहीं होगी,
पहाड़ चलना बंद कर देंगे,
हरी-हरी चादर को नहीं जलाएगा लावा,
कोई घर भी नहीं टूटेगा,
और फिर मेरा जन्म होगा ,
एक शांत, संतुष्ट और सम्पूर्ण मैं ...
बहुत संवेदनशील प्रस्तुति..बहुत प्रेरक और भावमयी..बहुत सुन्दर
एक अस्थिर नींव पर
अधूरा, अशक्त मकान बनाता हूँ
और करता रहता हूँ असफल कोशिश
अपनी नश्वरता को पोषित
करने की इस घर में ।
बहुत सुंदर ....बड़ी संवेदनशील और यथार्थ परक पंक्तियाँ हैं....
एक अस्थिर नींव पर
अधूरा, अशक्त मकान बनाता हूँ
behad sundar ...samvedanseel va hredaysparshi rachna .
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