तुम चाहते हो सब कुछ कह दूँ तुम्हें,
एक बार फिर दिल खोल कर रख दूँ
उन कुछ पलों को मेरे अपने हो जाओगे,
मैं तुम्हें थोड़ा और मालूम हो जाऊंगा,
जान जाओगे एक और राज़,
फिर शांत हो जाएगी तुम्हारी जिज्ञासा,
हम दोनों के बीच खुला पड़ा
सामने मेज पर मुझे
देखकर ऊब जाओगे,
कर्तव्य पूरा करोगे, मैं समझता हूँ कहकर ,
फिर तुम्हें अपनी सलीब दिखेगी
जो तुम्हें निकालेगी मेरी कहानी से हमेशा की तरह
दूर होने लगोगे तुम वहीं बैठे-बैठे,
और फिर सब भूल जाओगे जाते-जाते ,
थोड़ी देर में मेरा भी भ्रम दूर हो जाएगा
कि मन हल्का हो गया,
मैं थोड़ा और बिखर जाऊंगा,
खैर, तुम सुन तो लेते हो ...
....रजनीश (29.03.11)
3 comments:
बहुत अच्छा लिखा है सर!
सादर
थोड़ी देर में मेरा भी भ्रम दूर हो जाएगा
कि मन हल्का हो गया,
मैं थोड़ा और बिखर जाऊंगा,
खैर, तुम सुन तो लेते हो ...
wah. behad khoobsurat kavita hai.
हम दोनों के बीच खुला पड़ा
सामने मेज पर मुझे
देखकर ऊब जाओगे,
कर्तव्य पूरा करोगे, मैं समझता हूँ कहकर ,
फिर तुम्हें अपनी सलीब दिखेगी ...
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।
Post a Comment