तुम जब भी मिलते हो मुझसे
तब तुमसे मुखातिब मैं नहीं
बल्कि होती है एक तस्वीर ,
जानता हूँ , मैंने अपने एहसासों में देखा है,
तुमने जताया भी है हरदम कि-
वो तस्वीर है मेरी
तुम्हारे हाथों में,
पर मैंने नहीं दी तुम्हें,
मेरा आटोग्राफ भी नहीं,
और तो और, मै दिखता ही नहीं इसमें,
इसे तुमने खुद ही बनाया है ,
ठीक है मैं तुम्हारे सामने ही था
जब तुम मेरा अक्स उतार रहे थे
अपने रंगों और अपने ब्रश से,
कोई अंधेरा तो नहीं था वहाँ
ना ही कोई नकाब ओढ़े था मैं उस वक्त,
मैं बहुत करीब था ,
तुम रेखाएँ खींचते रहे और रंग भरते रहे ,
पर शायद मैं साफ़-साफ़ दिखा नहीं,
तुम चुपचाप बनाते चले गए,
कम से कम बताना तो था
कि उस वक्त दबे पाँव
जो उभर रहा था
वो मेरा ही चेहरा था,
मैं कर सकता था तुम्हारी कुछ मदद
और तब मैं ही मिला होता
तुम्हें इस तस्वीर में ...
और जब मैं खुद सामने हूँ अभी तुम्हारे
हमारे बीच से तुम ये तस्वीर हटा क्यूँ नहीं लेते ...
...रजनीश ( 05.04.11)
9 comments:
बहुत सुंदर हैं कविता के भाव....
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
और जब मैं खुद सामने हूँ अभी तुम्हारे
हमारे बीच से तुम ये तस्वीर हटा क्यूँ नहीं लेते ...
बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
खुबसुरत अदांज है आपका और उतनी ही खुबसुरती से आपने इसे सवॉरा है। आभार।
मैं कर सकता था तुम्हारी कुछ मदद
और तब मैं ही मिला होता
तुम्हें इस तस्वीर में ...
और जब मैं खुद सामने हूँ अभी तुम्हारे
हमारे बीच से तुम ये तस्वीर हटा क्यूँ नहीं लेते ...
कोमल एहसासों से भरी सुंदर अभिव्यक्ति -
बहुत सुंदर कविता .....!!
शुभकामनाएं .
सुन्दर प्रस्तुति...
भ्रष्टाचार के खिलाफ जनयुद्ध
भावों को शाब्दिक तस्वीर में अंकित कर दिया ..
Wonderful poetry. One of the best from you. Keep it up!
Wonderful poetry. One of the best from you. Keep it up!
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