बारिश की बूंदें
गरम तवे सी जमीं पर
छन्न से गिर गिर
भाप हो जाती हैं
हवा की तपिश
हवा हो जाती है
पहली बारिश में
जैसे कोई अपना
बरसों इंतज़ार करा
छम्म से सामने
आ गया हो अचानक
बह जाती है सारी जलन
बूंदों से बने दरिया में
पर तपिश की जगह
बैठ जाती है आकर
एक बैचेनी एक तकलीफ
जैसे एक रिश्ता दे रहा हो
आँखों को ठंडक
छोड़ दिल में एक भारीपन
रिश्तों की उमस का एहसास
बारिश के दिनों
बार बार होता रहता है
जिन्हें बुलाया था
मिन्नते कर
उन्हीं बादलों के
छंटने का इंतज़ार
कराती है एक उमस
बरसात के दिनों
और रिश्तों की उलझनों में
जो देता है ठंडक
वही उमस क्यूँ देता है...
.....(रजनीश 17.06.12)
10 comments:
बहुत बेहतरीन रचना,,,
,,
रजनीश जी,मै कई बार आपकी पोस्ट गया,किन्तु आप मेरे पोस्टो पर नही आये,जब कि आप दूसरों से अपने पोस्ट पर आकर टिप्पणी की आशा रखते है,तो हर टिप्पणी कार भी आपसे यही आशा रखता है,इसे अन्यथा न ले,शिष्टाचार के नाते ही सही टिप्पणी लौटाना चाहिए,,,,,,
RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
पानी के पहले की प्यास है यह..
सुन्दर रचना...
"उसी से ठंडा उसी से गरम" याद आ गया...
सादर.
आपकी अंतिम पंक्ति ने गज़ब ढा दिया
bahot sunder......
जाने क्यूँ रिश्तों में यूँ दर्द क्यूँ होता है....
बहुत सुन्दर रजनीश जी....
सादर
अनु
बेहतरीन !
गर्मी का गभीर प्रकोप और वारिश की छीटें.
वाकई ठंडक पहुंचाती कविता.
बहुत खूब ! रिश्तों में उमस सच में बहुत दिल को दुखाती है..लाज़वाब प्रस्तुति....
yahi to problem hai-thandak dundho to tapish bhi milti hai
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