राह तो बस राह है
उसे आसां या मुश्किल बनाना
इंसान का खेल है
तकदीर तो बस तकदीर है
उसे बिगाड़ना या बनाना
इंसान का खेल है
पत्थर तो बस पत्थर है
पत्थर को भगवान बनाना
इंसान का खेल है
फूल तो बस फूल है
फूल सेज़ या सिर पर चढ़ाना
इंसान का खेल है
यार तो बस यार हैं
यार को जात रंग में ढालना
इंसान का खेल है
चाहत तो बस चाहत है
उसे प्यार या नफ़रत बनाना
इंसान का खेल है
दीवारें तो बस दीवारें हैं
उनसे घर या कैदखाने बनाना
इंसान का खेल है
आग तो बस आग है
आग में जलना जलाना
इंसान का खेल है
पैसे तो बस पैसे हैं
उन्हें कौड़ी या खुदा बनाना
इंसान का खेल है
धरती तो बस धरती है
इसे ज़न्नत या जहन्नुम बनाना
इंसान का खेल है
इंसान तो बस इंसान है
उसे हिन्दू या मुसलमान बनाना
इंसान का खेल है
......रजनीश (03.03.2013)
9 comments:
वाह!
आपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 04-03-2013 को सोमवारीय चर्चा : चर्चामंच-1173 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत कुछ मनुष्य का रचा.. कभी आवश्यकता के लिए और कभी स्वार्थ के लिए
nice creation
बहुत बढ़िया है आदरणीय-
शुभकामनायें-
बहुत खूब
मेरी नई रचना
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
कितनी बेतरतीबी से इन्सान यह खेल खेल रहा है।
यह इंसानी फितरत ही है. सुंदर, सार्थक भावनात्मक कविता.
सुन्दर रचना.
बहुत खूब
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