सेब जब भी
पेड़ से टूटकर गिरा
सबने उसे स्वीकारा
वो हर बार जमीं पर
मिला
पर ये देख एक हुआ
बेहाल
उसने सेब से किया
सवाल
तुम नीचे ही क्यों हो
आते
तुम ऊपर क्यूँ नहीं
जाते
सेब का उत्तर था कमाल
हल हो गया था बड़ा सवाल
उस शख्स की सेब पर
नज़र क्या गई
सेब फिर भी गिरते रहे
पर दुनिया बदल गई ....
कितने सपने बुने
कितनी नज़्में लिखीं
सदियों गीतों में
पंछी बन
उड़ने की हसरत दिखी
फिर किसी ने सपना सच करने का बीड़ा
उठाया
जो कभी ना हुआ था वो करके दिखाया
ना उड़ पाने का मलाल
दिल पे ऐसा वार कर
गया
उसने उड़कर ही दम लिया
और समुंदर पार कर गया.....
पत्थरों से बनी आग
और शुरू हुई ये कहानी
हम इंसान, ईज़ाद करते गए
हमने हार न मानी
हमने हार न मानी
गलतियों से सीखते गये
खुद को सुधारते गये
गुफाओं कन्दराओं से निकल
अपनी किस्मत संवारते गए
चाँद के उस पार भी
पहुंचे हमारे कदम हैं
हुई खूब तरक्की हर तरफ हम
ही हम हैं ....
कुछ पैदा करने की ललक
कुछ नया करने की चाहत
नई राह पर चलने की इच्छा
जवाब पाने की हमारी हसरत
ये रचनात्मकता
नज़रिये में हो
तो हर परेशानी हल हो जाती है
लीक से हटकर जरा
सोचें तो
पहाड़ों से भी राह निकल आती है
.........रजनीश ( 26.04.2013)
:: Scott Adams ::
यह वर्ल्ड इंटेलेक्चुवल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइज़ेशन (WIPO) के द्वारा 2000 में शुरू किया गया है तथा इसका उद्देश्य है to "raise awareness of how patents,
copyright, trademarks and designs impact on daily life" and "to celebrate
creativity, and the contribution made by creators and innovators to the development of societies across the
globe" यह जानकारी विकिपीडिया से साभार
9 comments:
राह दिखती, पर राह से कोई राह निकाल ले वही अन्वेषक
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (27 -4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
bahut achha lga aapke blog par aakar ..ab aana hota rahega
badhiya
बहुत सुन्दर.....
बढ़ते रहें.........
अनु
हर नयी चीज़ की खोज या आविष्कार लीक से हट कर ही होता है .... स्ंदर रचना ।
बहुत प्रेरक रचना
हम्म..बात में दम है
सच है यदि लीक से हटकर सोचें तो कुछ नया जरुर मिलता है
सार्थक रचना
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