पर चिराग की जुगत में रस्ता ही गुम हो गया
अंधेरे में थी ना बात कि चरागों को बुझा सके
पर हवा का झोंका साजिश में शामिल हो गया
अंधेरा न आया कहीं से न गया ही था कहीं
जला बस इक चिराग माहौल रोशन हो गया
रही संग उसके रोशनी जब तक जला चिराग
थक कर क्या रुका वो अंधेरे में खो गया
रोशनी का समंदर अंधेरे को डुबा न सका
जाने कहाँ जलते चरागों का दम खो गया
बढ़ते कदमों को रोकने का दम अँधेरों में कहाँ
जब सफर बुलंद हौसलों से रोशन हो गया
अजब सी बात रोशनी में हम तुम ज़ुदा ज़ुदा
पर बंद आँखों से जब देखा मैं तुम हो गया
.....रजनीश (19.02.15)
1 comment:
सुन्दर कविता!
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