Saturday, March 5, 2011

तुमने कहा था

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तुमने
कहा था,
कि जो चाँद  उस  रात  ,
तारों की चादर ओढ़े ,
तुम्हारी खिड़की पर आके बैठा था,
उसमें  एक पत्थर पे
खुदा मेरा नाम,
तुम पढ़ ना सके थे ...
पर मुझे उस पत्थर के करीब ,
धूल में बसे
तुम्हारे कदमों के निशान,
अब भी दिखते हैं ...
वो चाँद ,
मेरी खिड़की पर भी आता है, अक्सर ...
....रजनीश (05.03.2011)

11 comments:

mridula pradhan said...

wah.behad khoobsurat.......

डॉ. मोनिका शर्मा said...

वो चाँद ,
मेरी खिड़की पर भी आता है, अक्सर ...

संवेदनशील मनोभाव ..... गहन अभिव्यक्ति

Udan Tashtari said...

बेहतरीन!!!

रचना दीक्षित said...

जो चाँद उस रात ,
तारों की चादर ओढ़े ,
तुम्हारी खिड़की पर आके बैठा था,

क्या बात कही है. बहुत बढ़िया.

POOJA... said...

बहुत सुन्दर...

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (7-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

वाणी गीत said...

वो चाँद मेरी खिड़की पर आता है अक्सर ...
सुन्दर !

Sadhana Vaid said...

बहुत ही कोमल और खूबसूरत प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

Dr (Miss) Sharad Singh said...

आपकी खिड़की पर चाँद के अक्सर आने की बधाई...

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर...

अनामिका की सदायें ...... said...

sunder abhivyakti.

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....