Sunday, April 24, 2011

एक नकली फूल

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मत करो
नकली फूल से नफ़रत
मैंने तो उसे एक, अमिट याद सा
दीवार पे लगाया है ,
ये कब से है
वैसा का वैसा ,
असली फूल तो
कुछ पल का साथी है,
उसे एक टहनी से काटकर
गुलदस्ते में लटकाकर
तिल-तिल करके मारते हो
और  उसकी गंध सूंघते हो ,
फिर फेंक देते हो ,
पता नहीं कैसे होता है
तुम्हें ताजगी का अहसास।
फूल को आखिर क्यूँ नहीं
बिखेरने देते खुशबू बगिया में,
जहां उसके पराग से
बनें कई और घर फूलों के,
नकली फूलों पर अगर धूल चढ़ जाये
तो उसे धोकर साफ कर लेना ,
बिलकुल नए हो जाएंगे,
और कुछ फूल बच जाएँगे ...
...रजनीश (22.04.11)

10 comments:

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Unknown said...

shaandar

मेरी नई पोस्ट देखें
मिलिए हमारी गली के गधे से

रचना दीक्षित said...

फूल को आखिर क्यूँ नहीं
बिखेरने देते खुशबू बगिया में,

पुष्प की व्यथा को सुंदर शब्दों से उकेरा है. बधाई.

Dr (Miss) Sharad Singh said...

फूल को आखिर क्यूँ नहीं
बिखेरने देते खुशबू बगिया में,
जहां उसके पराग से
बनें कई और घर फूलों के,...

गहन जीवन दर्शन है आपकी इस रचना में....

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|

वाणी गीत said...

नकली फूलों को भी इतनी तवज्जो ...
नवीन दृष्टिकोण ...सकारत्मक सोच किसी में भी कुछ अच्छा ढूंढ ही लेती है ...
अच्छी प्रस्तुति !

डॉ. मोनिका शर्मा said...

फूल को आखिर क्यूँ नहीं
बिखेरने देते खुशबू बगिया में,


संवेदनशील विचारों की सुंदर प्रस्तुति

Kailash Sharma said...

फूल को आखिर क्यूँ नहीं
बिखेरने देते खुशबू बगिया में,
जहां उसके पराग से
बनें कई और घर फूलों के,...

बहुत सुन्दर और संवेदशील प्रस्तुति..

निवेदिता श्रीवास्तव said...

beautiful poem .....

अनामिका की सदायें ...... said...

kash koi foolon ko bhi samjhe. sunder bhaavpoorn abhivyakti.

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....