मत करो
नकली फूल से नफ़रत
मैंने तो उसे एक, अमिट याद सा
दीवार पे लगाया है ,
ये कब से है
वैसा का वैसा ,
असली फूल तो
कुछ पल का साथी है,
उसे एक टहनी से काटकर
गुलदस्ते में लटकाकर
तिल-तिल करके मारते हो
और उसकी गंध सूंघते हो ,
फिर फेंक देते हो ,
पता नहीं कैसे होता है
तुम्हें ताजगी का अहसास।
फूल को आखिर क्यूँ नहीं
बिखेरने देते खुशबू बगिया में,
जहां उसके पराग से
बनें कई और घर फूलों के,
नकली फूलों पर अगर धूल चढ़ जाये
तो उसे धोकर साफ कर लेना ,
बिलकुल नए हो जाएंगे,
और कुछ फूल बच जाएँगे ...
...रजनीश (22.04.11)
10 comments:
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (25-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
shaandar
मेरी नई पोस्ट देखें
मिलिए हमारी गली के गधे से
फूल को आखिर क्यूँ नहीं
बिखेरने देते खुशबू बगिया में,
पुष्प की व्यथा को सुंदर शब्दों से उकेरा है. बधाई.
फूल को आखिर क्यूँ नहीं
बिखेरने देते खुशबू बगिया में,
जहां उसके पराग से
बनें कई और घर फूलों के,...
गहन जीवन दर्शन है आपकी इस रचना में....
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
नकली फूलों को भी इतनी तवज्जो ...
नवीन दृष्टिकोण ...सकारत्मक सोच किसी में भी कुछ अच्छा ढूंढ ही लेती है ...
अच्छी प्रस्तुति !
फूल को आखिर क्यूँ नहीं
बिखेरने देते खुशबू बगिया में,
संवेदनशील विचारों की सुंदर प्रस्तुति
फूल को आखिर क्यूँ नहीं
बिखेरने देते खुशबू बगिया में,
जहां उसके पराग से
बनें कई और घर फूलों के,...
बहुत सुन्दर और संवेदशील प्रस्तुति..
beautiful poem .....
kash koi foolon ko bhi samjhe. sunder bhaavpoorn abhivyakti.
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