बस एक ही
काम है अपना
वक़्त के साथ चलना
पर उसके कंधे से मेरा कंधा
कहाँ मिला ?
हम दोनों ही चलते हैं
उसका हाथ
मेरे हाथों में जरूर है
पर मेरा बाकी जिस्म
है बहुत पीछे ,
महसूस होता है ये फासला
हाथ में जीते हुए दर्द से
खींचता है वक़्त , देता है आवाजें
कहता हूँ , वक़्त तुम ही कुछ तेज हो
वक़्त कहता है
हाथ छूटा तो फिर न कहना
अगर मैं पहुँच गया
तुमसे पहले उस ठिकाने पर
तो फिर तुम्हें खींच न पाऊँगा
तुम्हारी अधूरी कहानी
संग ख़त्म हो जाऊंगा
मैंने कहा मैं क्या करूँ
तुम ही मुझे इस कंटीले
ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर ले आए
तुम खुद आगे निकल गए
ऐ वक़्त तुम रुकते नहीं हो
किसी के लिए
मेरी भी कोई दुश्मनी नहीं तुमसे
फिर ये खींचातानी किस लिए
तकलीफ़ तो तुम्हें भी होती होगी
इन पथरीले फिसलन भरे रस्तों में
मत रुको मैं नहीं लड़ूँगा
पर अब रास्ता मैं बनाऊँगा
और जहां तक चल सकूँ
अब तुम होगे मेरे साथ
तुम्हारी पहचान मुझसे है
तुम मेरा वक़्त हो
बहुत हो गया
अब मैं तुम्हें मंज़िल दूँगा ...
...रजनीश ( 05.07.2011 )
11 comments:
कहीं खोया हुआ आत्मविश्वास फिर जाग गया है ...!!
सुंदर दृढ़ता देती रचना ...
सुन्दर
एक ही
काम है अपना
वक़्त के साथ चलना
पर उसके कंधे से मेरा कंधा
कहाँ मिला ?
हम दोनों ही चलते हैं
उसका हाथ
मेरे हाथों में जरूर है
पर मेरा बाकी जिस्म
है बहुत पीछे ,
महसूस होता है ...
.........
अब तुम होगे मेरे साथ
तुम्हारी पहचान मुझसे है
तुम मेरा वक़्त हो
बहुत हो गया
अब मैं तुम्हें मंज़िल दूँगा ...
waah... yah hausla bana rahe
तुमसे पहले उस ठिकाने पर
तो फिर तुम्हें खींच न पाऊँगा ||
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई |
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई |
बेहतरीन!
एक ही
काम है अपना
वक़्त के साथ चलना
kya baat hai.....yahi to sabse badi baat hai.
वाह ये हुआ ना जज़्बा…………जो वक्त को भी अपने साथ चलने को मजबूर कर दे।
मत रुको मैं नहीं लड़ूँगा
पर अब रास्ता मैं बनाऊँगा
और जहां तक चल सकूँ
अब तुम होगे मेरे साथ
तुम्हारी पहचान मुझसे है
तुम मेरा वक़्त हो
बहुत हो गया
अब मैं तुम्हें मंज़िल दूँगा ...
जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
Bahut badhiya rajneesh...
Shandar Aur jaandar
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