Wednesday, July 6, 2011

वक़्त से बात

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बस एक ही
काम है अपना
वक़्त के साथ चलना
पर उसके कंधे से मेरा कंधा
कहाँ मिला ?
हम दोनों ही चलते हैं
उसका हाथ
मेरे हाथों में जरूर है
पर मेरा बाकी जिस्म
है बहुत पीछे ,
महसूस होता है ये फासला
हाथ में जीते हुए दर्द से
खींचता है वक़्त , देता है आवाजें
कहता हूँ , वक़्त तुम ही कुछ तेज  हो
वक़्त कहता है
हाथ छूटा तो फिर न कहना
अगर मैं पहुँच गया
तुमसे पहले उस ठिकाने पर
तो फिर तुम्हें खींच न पाऊँगा
तुम्हारी अधूरी कहानी
संग ख़त्म हो जाऊंगा
मैंने कहा मैं क्या करूँ
तुम ही मुझे इस कंटीले
ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर ले आए
तुम खुद आगे निकल गए
ऐ  वक़्त तुम रुकते नहीं हो
किसी के लिए
मेरी भी कोई दुश्मनी नहीं तुमसे
फिर ये खींचातानी किस लिए
तकलीफ़ तो तुम्हें भी होती होगी
इन पथरीले फिसलन भरे रस्तों में
मत रुको मैं नहीं लड़ूँगा
पर अब रास्ता मैं बनाऊँगा
और जहां तक चल सकूँ
अब तुम होगे मेरे साथ
तुम्हारी पहचान मुझसे है
तुम मेरा वक़्त हो
बहुत हो गया
अब मैं तुम्हें मंज़िल दूँगा ...
...रजनीश ( 05.07.2011 )

11 comments:

Anupama Tripathi said...

कहीं खोया हुआ आत्मविश्वास फिर जाग गया है ...!!
सुंदर दृढ़ता देती रचना ...

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

सुन्दर

रश्मि प्रभा... said...

एक ही
काम है अपना
वक़्त के साथ चलना
पर उसके कंधे से मेरा कंधा
कहाँ मिला ?
हम दोनों ही चलते हैं
उसका हाथ
मेरे हाथों में जरूर है
पर मेरा बाकी जिस्म
है बहुत पीछे ,
महसूस होता है ...
.........

अब तुम होगे मेरे साथ
तुम्हारी पहचान मुझसे है
तुम मेरा वक़्त हो
बहुत हो गया
अब मैं तुम्हें मंज़िल दूँगा ...
waah... yah hausla bana rahe

रविकर said...

तुमसे पहले उस ठिकाने पर
तो फिर तुम्हें खींच न पाऊँगा ||


सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई |

रविकर said...

सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई |

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन!

mridula pradhan said...

एक ही
काम है अपना
वक़्त के साथ चलना
kya baat hai.....yahi to sabse badi baat hai.

vandana gupta said...

वाह ये हुआ ना जज़्बा…………जो वक्त को भी अपने साथ चलने को मजबूर कर दे।

Dr (Miss) Sharad Singh said...

मत रुको मैं नहीं लड़ूँगा
पर अब रास्ता मैं बनाऊँगा
और जहां तक चल सकूँ
अब तुम होगे मेरे साथ
तुम्हारी पहचान मुझसे है
तुम मेरा वक़्त हो
बहुत हो गया
अब मैं तुम्हें मंज़िल दूँगा ...


जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

Unknown said...

Bahut badhiya rajneesh...

Unknown said...

Shandar Aur jaandar

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....