कभी विचार करते हैं क्रंदन ,
और फिर मैं लिखता हूँ,
कभी सोच को जीवन देता हूँ,
कभी लिख कर सोचने लगता हूँ लाइनों का भविष्य ,
कभी लिखता हूँ और कुछ उतरता नहीं ख्यालों में ,
कभी सोचता हूँ तो कलम फंसी रह जाती है
लाइन पर बने गड्ढे में ,
मैं कभी महसूस करता हूँ
किसी क्षण का कंपन,
और वो जाकर बैठ जाते हैं लाइनों की दहलीज पर ,
कभी चलती है कलम बिना किसी झंकार के,
कभी एहसास बयान हो जाता है,
कभी लिखते हुए महसूस होता है स्याही का नृत्य,
कभी लाइनों से छिटक हाथ पर भी आ जाती है स्याही ,
कभी महसूस होता है कुछ, और कलम रुक जाती है,
कभी जो सोच में घटता है , एहसास में नहीं होता,
कभी एहसास का चेहरा ही नहीं पढ़ा जाता ,
कभी होता है सोचने का एहसास,
कभी सोच, सिर्फ सोच रह जाती है संवेदना शून्य,
और कभी एहसास हो जाते हैं बेमानी,
कभी सोचता हूँ कुछ, लिख जाता हूँ कुछ और,
कभी लिखते-लिखते, एहसास ही बदल जाता है,
कभी शब्दों पर फैल जाती है स्याही ,
कभी लाइनें ही टकरा जाती हैं आपस में ,
लड़ बैठती हैं और शब्द भाग जाते हैं ...
इसी कश्मकश में रोज
मैं किसी कविता का करता हूँ नामकरण
या फिर उसे देता हूँ मुखाग्नि....
.....रजनीश (15.12.10)
25 comments:
गहन अभिव्यक्ति..... प्रभावित करती बेहतरीन रचना
कभी सोचता हूँ कुछ, लिख जाता हूँ कुछ और,
कभी लिखते-लिखते, एहसास ही बदल जाता है,
कभी शब्दों पर फैल जाती है स्याही ,
कभी लाइनें ही टकरा जाती हैं आपस में ,
लड़ बैठती हैं और शब्द भाग जाते हैं ...
waah... kitni sahaj sthiti hai yah
GOOD Analysis ||
badhaai ||
बहुत बढ़िया सर।
सादर
कभी महसूस होता है कुछ, और कलम रुक जाती है,
कभी जो सोच में घटता है , एहसास में नहीं होता,
कभी एहसास का चेहरा ही नहीं पढ़ा जाता ,
कभी होता है सोचने का एहसास,
कभी सोच, सिर्फ सोच रह जाती है संवेदना शून्य,
और कभी एहसास हो जाते हैं बेमानी,
कितनी खूबसूरती से आपने एक कवि के दिल का हाल बयान किया है रचना कैसे उतरती है कागज पर और उसके पीछे की सोच और अहसास का ताना-बना .... बहुत सुंदर!
kitni sahajta se man ke bhavon ko ukera hai......vaah
I think this is the story of every writer, I love the phrase, क्षण का कंपन.
Even my husband likes your work, his name is Alok Singhal. Beautiful creation...
बहुत ही सहज और सुंदर अभिवक्ति....
khubsurat abhivaykti....
kashmokash ko sunder shabd vyanjana se uker diya hai.
कभी सोचता हूँ कुछ, लिख जाता हूँ कुछ और,
कभी लिखते-लिखते, एहसास ही बदल जाता है,
कभी शब्दों पर फैल जाती है स्याही ,
कभी लाइनें ही टकरा जाती हैं आपस में ,
लड़ बैठती हैं और शब्द भाग जाते हैं ...
इसी कश्मकश में रोज
मैं किसी कविता का करता हूँ नामकरण
या फिर उसे देता हूँ मुखाग्नि....
apna bhi yahi haal hai
rachna bahut hi pasand aai .
बहुत ही सहज और सुंदर अभिवक्ति,अहसास का सुंदर ताना-बना.
इसी कश्मकश में रोज
मैं किसी कविता का करता हूँ नामकरण
या फिर उसे देता हूँ मुखाग्नि....
मार्मिक रचना ....
कभी लिखते हुए महसूस होता है स्याही का नृत्य,
कभी लाइनों से छिटक हाथ पर भी आ जाती है स्याही ,
मर्मस्पर्शी रचना ! हार्दिक शुभकामनायें !
मैं कभी महसूस करता हूँ
किसी क्षण का कंपन,
और वो जाकर बैठ जाते हैं लाइनों की दहलीज पर ,
कभी चलती है कलम बिना किसी झंकार के,
कभी एहसास बयान हो जाता है,
कभी लिखते हुए महसूस होता है स्याही का नृत्य,
कभी लाइनों से छिटक हाथ पर भी आ जाती है स्याही ,
क्या लिखा है रजनीश जी. आनन्द आ गया. भावबिभोर कर दिया आपने.
kavita ka safar bade hee sahaj bhav se varnit kar diya.....
sunder abhivykti.
आदरणीय तिवारी जी बहुत अच्छी कविता |बधाई और शुभकामनायें
मेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद... गहन भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
कल 02/08/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
माफ कीजयेगा पिछले कमेन्ट मे तारीख गलत हो गयी थी
अच्छी रचना ....
इसी कश्मकश में रोज
मैं किसी कविता का करता हूँ नामकरण
या फिर उसे देता हूँ मुखाग्नि....
aise hi upajati hai kavita ...
sunder sahaj bhav kavi hriday ke.....
मान के भावों को सही शब्दों में उतारा है
बहुत गहरा विश्लेष्ण
कभी सोचता हूँ कुछ, लिख जाता हूँ कुछ और,
कभी लिखते-लिखते, एहसास ही बदल जाता है,
कभी शब्दों पर फैल जाती है स्याही ,
कभी लाइनें ही टकरा जाती हैं आपस में ,
लड़ बैठती हैं और शब्द भाग जाते हैं ...
क्या बात है! बहुत बढ़िया!
मर्मस्पर्शी रचना !
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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