( अपनी एक पुरानी कविता पुनः पोस्ट कर रहा हूँ ....)
एक चेहरा
जो सिर्फ एक चेहरा है मेरे लिए
दिख जाता है अक्सर
जब भी पहुंचता हूँ चौराहे पर,
एक चेहरा हरदम सामने रहता है
चाहे कहीं से भी गुज़रूँ
कोई चेहरा होता है अजनबी पर
लगता जाना पहचाना,
कभी चलते चलते मिल जाता है
कुछ नई परतों के साथ
कोई चेहरा जो दोस्त था,
कभी ऐसा चेहरा मिल जाता है
पुराना जो दोस्त न बन सका था
कोई चेहरा ऐसा जिसे मैं पसंद नहीं
कोई ऐसा जो मुझे न भाया कभी
कुछ चेहरे कभी ना बदलते और
हैं हरदम बदलते हुए चेहरे भी
चेहरों पर चढ़े चेहरे मुखौटे जैसे
चेहरों से उतरते चेहरे नकली रंगों जैसे
हर चेहरे में एक आईना है
हर चेहरा अनगिनत प्रतिबिंब है
अगर कोई और देखे तो
वही चेहरा दिखता है कुछ और
हर गली चेहरों की नदियां
हर चौराहा चेहरों का समंदर है
अंदर बनते बिगड़ते खयालात
जागते सोते जज़्बात
सभी जुड़े चेहरों से
सूनी वादियों में भी दिख जाता
कोई चेहरा
बादलों , समुंदर की लहरों ,ओस की बूंद
और आँखों से टपकते मोती में भी चेहरे
एक चेहरा दिखता आँखें बंद करने पर
( एक चेहरा नहीं दिखता आंखे खुली होने पर भी !)
मैं ही हूँ इन चेहरों मैं
तुम भी हो इन चेहरों मैं
मैं एक बूंद नहीं चेहरों की नदी हूँ
नदी ही क्यूँ समुंदर हूँ
और तुम भी
बिना चेहरों के न भूत है न भविष्य
न हर्ष है न विषाद
न कुछ सुंदर न वीभत्स
और वर्तमान भी शून्य है
अगर चेहरे नहीं तो
न मैं हूँ न तुम
...रजनीश (24.05.2011)
10 comments:
बेहद गहन और सशक्त प्रस्तुति
बहुत गहरे भाव व्यक्त करती प्रभावशाली रचना !इन सारे चेहरों के पार एक और भी चेहरा है हमारा असली चेहरा..
हर चीज़ में चेहरा मायने रखता है फिर चाहे वो इंसान हो या परिस्थितियाँ...भावपूर्ण रचना
एक चेहरे के पीछे छिपा विचारों का समुच्चय...
when you talk of chehra do you mean a mask? because few faces nowadays are true reflections of soul.
बहुत सुन्दर और बेहतरीन रचना...
दिल सच्चा और चेहरा झूठा,भावपुर्ण सुंदर प्रस्तुति,,,,,
RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,
बिना चेहरों के न भूत है न भविष्य
न हर्ष है न विषाद
न कुछ सुंदर न वीभत्स
और वर्तमान भी शून्य है
अगर चेहरे नहीं तो
न मैं हूँ न तुम...जीवन का कटु सत्य है....
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति।
बहुत सुन्दर
एक चेहरा वह है जो हम देखना चाहते हैं, एक वह है जिसे हम देखना ही नहीं चाहते
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