बार बार करें यातरा, रह रह रणभेरी बजाय
पर भ्रष्टाचारी दानव को, कोई हिला ना पाय
कहीं गड़ी है आँख, तीर कहीं और चलाय
पर भ्रष्टाचारी दानव की, सब समझ में आय
बेदम या दमदार बिल, में क्यूँ रहते उलझाय
गइया कोई भी किताब, पल में चट कर जाय
हम कर लें तो भ्रष्ट हैं, वो करे संत कहलाय
अब क्या है भ्रष्टाचार, ये प्रश्न न हल हो पाय
भरते जाते सब जेल, तिलभर जगह बची न हाय
भ्रष्टाचार बाहर खड़ा, देखो मंद मंद मुसकाय
.....रजनीश (04.05.12)
7 comments:
बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति // बेहतरीन दोहे //
MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
achchi kahi......
यथार्थ का सुन्दर वैचारिक प्रस्तुतिकरण...
सच को कहती अच्छी रचना
सारा जग भरमाय कि भैया कौनो करो उपाय..
हम कर लें तो भ्रष्ट, वो कर लें तो संत..
यही तो भ्रष्टाचार की महिमा है।
sundar srijan
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