Friday, May 4, 2012

भ्रष्टाचार महिमा



बार बार करें यातरा, रह रह रणभेरी बजाय  
पर भ्रष्टाचारी दानव को, कोई हिला ना पाय  

कहीं गड़ी है आँख, तीर कहीं और  चलाय 
पर भ्रष्टाचारी दानव की, सब समझ में आय 

बेदम या दमदार बिल, में क्यूँ रहते उलझाय  
गइया कोई भी किताब, पल में चट कर जाय  

हम कर लें तो भ्रष्ट हैं, वो करे संत कहलाय  
अब क्या है भ्रष्टाचार, ये प्रश्न न हल हो पाय  

भरते जाते सब जेल, तिलभर जगह बची न हाय 
भ्रष्टाचार बाहर खड़ा, देखो मंद मंद मुसकाय

.....रजनीश (04.05.12)

7 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति // बेहतरीन दोहे //

MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....

mridula pradhan said...

achchi kahi......

Dr (Miss) Sharad Singh said...

यथार्थ का सुन्दर वैचारिक प्रस्तुतिकरण...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सच को कहती अच्छी रचना

प्रवीण पाण्डेय said...

सारा जग भरमाय कि भैया कौनो करो उपाय..

महेन्‍द्र वर्मा said...

हम कर लें तो भ्रष्ट, वो कर लें तो संत..

यही तो भ्रष्टाचार की महिमा है।

Onkar said...

sundar srijan

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....