कभी
एक लकीर खींची थी
मैंने , जमीन पर /
आज कोशिश की
उसे मिटाने की/
आज लड़ा उस लकीर से /
अपनी जमीन पर गड्ढे
कर लिए मैंने/
मिट्टी निकाली, उस
गहराती लकीर पर डालने/
मिट्टी निकालते -निकालते...
गड्ढे में ही फिसल गया /
अपने हाथ-पैर
ही तुड़वा बैठा !
और लकीर गहराती रही ...
ये लकीर ऊंची दीवार लगती है ...
अब उस लकीर से घिरा, लहूलुहान ,
सोचता हूँ ...
आखिर , खींची ही क्यूँ
ये लकीर मैंने ,
क्यों बनाई ये सीमा !!!
लकीरें खींचने की
ये लत ,
बहुत तकलीफ देती है,
हर बार दिल पर निशान पड़ते हैं /
पर क्या करूँ ,
मजबूर हूँ...
....रजनीश (05.01.11)
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