धूप ने महीनों सुखाया था मिट्टी को
आखिरी बूंद तक निकाल ले गई थी
जली हुई जमीं की राख़ उड़ती थी हवा में
छांव की ठंडक हवा संग बह गई थी
गरम थपेड़ों की मार ने
झुलसाया था दीवारों को
हर झरोखे में तड़पती
एक प्यास दिखने लगी थी
मिल गई थी तपिश
भीतर की जलन से
छू लेता था अगर कुछ
तो आग लग जाती थी
फिर एक झरोखे से कूद कर
आई एक सोंधी खुश्बू
एक नमी का अहसास
पानी की एक बूंद मिट्टी से मिली थी
फिर, हर तरफ बूंदे ही बूंदे
बुझा रही थी जमीं की प्यास
पूरी ताकत और आवाज के साथ गिरती बूंदें
जमीं को तरबतर कर रहीं थीं
तैयार होकर आई थीं बूंदे
बादल और बिजली के साथ
बूंदे मिट्टी में बह रहीं थी कतार बांधे
एक बारिश मेरे भीतर हो रही थी
...रजनीश (18.06.2011)
10 comments:
फिर एक झरोखे से कूद कर
आई एक सोंधी खुश्बू
एक नमी का अहसास
पानी की एक बूंद मिट्टी से मिली थी
बारिश की पहली बूंदों का आनंद निराला है. सुदर भाव लिए हुए खूबसूरत कविता.
बूंदे मिट्टी में बह रहीं थी कतार बांधे
एक बारिश मेरे भीतर हो रही थी
सुन्दर एहसास लिए अच्छी रचना
फिर एक झरोखे से कूद कर
आई एक सोंधी खुश्बू
एक नमी का अहसास
पानी की एक बूंद मिट्टी से मिली थी
....maine dekha use kudker aate
एक बारिश मेरे भीतर हो रही थी...sunder bhaav aur khubsurat shabdo se saja diya apne...
बूंदे मिट्टी में बह रहीं थी कतार बांधे
एक बारिश मेरे भीतर हो रही थी...
मन ना भीगता तो तन का भीगना क्या होता ..
प्रकृति के साथ खूबसूरत भावनाएं जुडी तो सुहाने मौसम की प्यारी कविता फूट पड़ी ...
बहुत बढ़िया !
मौसम के अनुकूल अच्छी कविता ......
बारिश की बूंद और मिट्टी का संबंध कितना अद्भुत है... सुंदर शब्दों के माध्यम से प्रकृति का चित्रण करती कविता !
bahut khoob ,rajnish bhai.
bhigo gayee aapki rachna.
कल ही अखबार में पढ़ रहा था कि बारिश का हिन्दी फ़िल्मों में कितना महत्व है, आज आप की बरसाती कविता - बहुत खूब।
बारिश का आनंद देती हुई सुन्दर कविता ।
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