हर रोज़ सुबह
दरवाजे पर संसार
पड़ा हुआ मिलता है
चंद पन्नों में
चाय की चुस्कियों में
घोलकर कुछ लाइनें
पीने की आदत सी हो गई है
और साथ इस एहसास को जीने की
कि कुछ बदला नहीं
सब कुछ वैसा ही है
जैसा पिछली सुबह था
बासे पन्ने
होता वही है जो पहले हुआ था
संवाददाता बदलता है
कल जो वहाँ हुआ था
आज यहाँ होता है
बस हैवानियत घर बदलती है
इन्सानियत एक कोना तलाशती है
कुछ पल ही लगते हैं
इन बासे कसैले पन्नों को
रद्दी में तब्दील होने में
दुर्घटना दुष्प्रचार
भ्रष्टाचार व्यभिचार
कहीं आतंक कहीं आक्रोश
कहीं टूटा सपना कहीं बिछोह
थोड़ी खुशी ढेर सारा ग़म
कोई जलजला कहीं विद्रोह
खबरें रोज़ जनमती रोज़ मरती हैं
रहती हैं दफन इन पन्नों में
जब गठरी बड़ी हो जाती है
रद्दी वाले की हो जाती है
और हर बार टोकरी देख
सोचता हूँ क्या यही है संसार
जो है इन अखबारों में?
क्या करूँ जो इन पन्नों का
चेहरा बदल जाए
निकले इनमें से प्यार की महक
जिन्हें पढ़कर चेहरा खिल जाए
और सुबह सुबह
चाय की चुस्कियों में
कुछ मजा आ जाए....
...रजनीश (11.07.2011)
24 comments:
इस प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई ||
क्या करूँ जो इन पन्नों का
चेहरा बदल जाए
निकले इनमें से प्यार की महक
जिन्हें पढ़कर चेहरा खिल जाए
और सुबह सुबह
चाय की चुस्कियों में
कुछ मजा आ जाए....
... biscuit ke saath chay lijiye, akhbaar ke panne nahin badlenge
आपके साथ कल मंगलवार को सुबह की चाय का आनन्द लेंगे चर्चामंच पर वहां आइये और अपने विचार प्रस्तुत करिए इस लिंक पर- http://charchamanch.blogspot.com/
निकले इनमें से प्यार की महक
जिन्हें पढ़कर चेहरा खिल जाए
और सुबह सुबह
चाय की चुस्कियों में
कुछ मजा आ जाए....
बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं सर!
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कल 12/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बासी ख़बरें ताज़ा करके चाय की चुस्की के साथ पढ़ी जाती हैं .. अच्छी प्रस्तुति
चाय की चुस्कियों में
कुछ मजा आ जाए...
I really hope that sometime in future we see this day
बहुत सुंदर कविता ! इन पन्नों का चेहरा तो बदलने से रहा हाँ आप सुबह-सुबह कागज के अखबार की जगह परमात्मा का जीता जागता, प्रकृति का अखबार पढ़िये हर रोज सूरज कुछ और ही ढंग से निकलता है... हर सुबह हवा किन्हीं और ही फूलों की गंध लाती है...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत ही सुन्दर, बेहतरीन अभिव्यक्ति!
बहुत ही सुन्दर, बेहतरीन अभिव्यक्ति!
निकले इनमें से प्यार की महक
जिन्हें पढ़कर चेहरा खिल जाए
और सुबह सुबह
चाय की चुस्कियों में
कुछ मजा आ जाए....
achchhi asha hai ...
sunder rachna .
बेहतरीन कविता ।
सुबह की चाय का आनंद ही कुछ और है।
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सुबह सुबह चाय को बेस्वाद होने से बचाने के लिए सबसे पहले सम्पादकीय पृष्ठ पढ़ें ...
बाकी ख़बरें तो अखबार और टीवी ,दोनों ही मूड बिगडती हैं ...काश की हम इनको बदल सकते !
वो सुबह कभी तो आयेगी.......
wah chaye ke pyaale ke saath paper ka kya taalmail bithayaa hai.sach hai chaye se muh to meetha ho jaataa hai per akhwaar ki khabron se dil kaselaa ho jaata hai.saarthak rachanaa.badhaai sweekaren.
सुबह की चाय का मज़ा वो भी अखबार के साथ ..वाह!...सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुंदर रचना. वाह
कुछ पल ही लगते हैं
इन बासे कसैले पन्नों को
रद्दी में तब्दील होने में
दुर्घटना दुष्प्रचार
भ्रष्टाचार व्यभिचार
कहीं आतंक कहीं आक्रोश
कहीं टूटा सपना कहीं बिछोह
थोड़ी खुशी ढेर सारा ग़म
कोई जलजला कहीं विद्रोह
खबरें रोज़ जनमती रोज़ मरती हैं
यथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक कविता...
'बस हैवानियत घर बदलती है
इंसानियत एक कोना तलाशती है '
.................वाह रजनीश भाई , इन्ही दो पंक्तियों में पूरे वर्तमान को समाहित कर दिया
बहुत सही फरमाया आपने वही बासी ख़बरें नये रूप-रंग में
यथार्थ से रूबरू कृति बेहतरीन रचना
बधाई स्वीकार करे
सुबह की चाय की मिठास अख़बार कड़वी के देता है , अच्छी रचना बधाई
बासी खबर और ताज़ा चाय ... वाह ...
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