Monday, July 11, 2011

सुबह की चाय

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हर रोज़ सुबह
दरवाजे पर संसार
पड़ा हुआ मिलता है
चंद पन्नों में
चाय की चुस्कियों में
घोलकर   कुछ लाइनें
पीने की आदत सी हो गई है
और साथ इस एहसास को जीने की
कि कुछ बदला नहीं
सब कुछ वैसा ही है
जैसा पिछली सुबह था
बासे पन्ने
होता वही है जो पहले हुआ था
संवाददाता बदलता  है
कल जो वहाँ हुआ था
आज यहाँ होता है
बस हैवानियत घर बदलती है
इन्सानियत एक कोना तलाशती है
कुछ पल ही लगते हैं 
इन बासे कसैले पन्नों को
रद्दी में तब्दील होने में
दुर्घटना दुष्प्रचार 
भ्रष्टाचार  व्यभिचार
कहीं आतंक कहीं आक्रोश
कहीं टूटा  सपना कहीं  बिछोह
थोड़ी खुशी ढेर सारा ग़म
कोई जलजला कहीं विद्रोह
खबरें रोज़ जनमती रोज़ मरती हैं
रहती हैं दफन इन पन्नों में
जब गठरी बड़ी हो जाती है
रद्दी वाले की हो जाती है
और हर बार टोकरी देख
सोचता हूँ क्या यही है संसार
जो है इन अखबारों में?
क्या करूँ जो इन पन्नों का
चेहरा बदल जाए
निकले इनमें से प्यार की महक
जिन्हें पढ़कर चेहरा खिल जाए
और सुबह सुबह
चाय की चुस्कियों  में
कुछ मजा आ जाए.... 
...रजनीश (11.07.2011)

24 comments:

रविकर said...

इस प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई ||

रश्मि प्रभा... said...

क्या करूँ जो इन पन्नों का
चेहरा बदल जाए
निकले इनमें से प्यार की महक
जिन्हें पढ़कर चेहरा खिल जाए
और सुबह सुबह
चाय की चुस्कियों में
कुछ मजा आ जाए....
... biscuit ke saath chay lijiye, akhbaar ke panne nahin badlenge

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

आपके साथ कल मंगलवार को सुबह की चाय का आनन्द लेंगे चर्चामंच पर वहां आइये और अपने विचार प्रस्तुत करिए इस लिंक पर- http://charchamanch.blogspot.com/

Yashwant R. B. Mathur said...

निकले इनमें से प्यार की महक
जिन्हें पढ़कर चेहरा खिल जाए
और सुबह सुबह
चाय की चुस्कियों में
कुछ मजा आ जाए....

बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं सर!
-------------------
कल 12/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बासी ख़बरें ताज़ा करके चाय की चुस्की के साथ पढ़ी जाती हैं .. अच्छी प्रस्तुति

Jyoti Mishra said...

चाय की चुस्कियों में
कुछ मजा आ जाए...

I really hope that sometime in future we see this day

Anita said...

बहुत सुंदर कविता ! इन पन्नों का चेहरा तो बदलने से रहा हाँ आप सुबह-सुबह कागज के अखबार की जगह परमात्मा का जीता जागता, प्रकृति का अखबार पढ़िये हर रोज सूरज कुछ और ही ढंग से निकलता है... हर सुबह हवा किन्हीं और ही फूलों की गंध लाती है...

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

nilesh mathur said...

बहुत ही सुन्दर, बेहतरीन अभिव्यक्ति!

nilesh mathur said...

बहुत ही सुन्दर, बेहतरीन अभिव्यक्ति!

Anupama Tripathi said...

निकले इनमें से प्यार की महक
जिन्हें पढ़कर चेहरा खिल जाए
और सुबह सुबह
चाय की चुस्कियों में
कुछ मजा आ जाए....

achchhi asha hai ...
sunder rachna .

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

बेहतरीन कविता ।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सुबह की चाय का आनंद ही कुछ और है।

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वाणी गीत said...

सुबह सुबह चाय को बेस्वाद होने से बचाने के लिए सबसे पहले सम्पादकीय पृष्ठ पढ़ें ...
बाकी ख़बरें तो अखबार और टीवी ,दोनों ही मूड बिगडती हैं ...काश की हम इनको बदल सकते !

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

वो सुबह कभी तो आयेगी.......

prerna argal said...

wah chaye ke pyaale ke saath paper ka kya taalmail bithayaa hai.sach hai chaye se muh to meetha ho jaataa hai per akhwaar ki khabron se dil kaselaa ho jaata hai.saarthak rachanaa.badhaai sweekaren.

Nidhi said...

सुबह की चाय का मज़ा वो भी अखबार के साथ ..वाह!...सुन्दर प्रस्तुति

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर रचना. वाह

Dr (Miss) Sharad Singh said...

कुछ पल ही लगते हैं
इन बासे कसैले पन्नों को
रद्दी में तब्दील होने में
दुर्घटना दुष्प्रचार
भ्रष्टाचार व्यभिचार
कहीं आतंक कहीं आक्रोश
कहीं टूटा सपना कहीं बिछोह
थोड़ी खुशी ढेर सारा ग़म
कोई जलजला कहीं विद्रोह
खबरें रोज़ जनमती रोज़ मरती हैं


यथार्थ के धरातल पर रची गयी एक सार्थक कविता...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

'बस हैवानियत घर बदलती है
इंसानियत एक कोना तलाशती है '
.................वाह रजनीश भाई , इन्ही दो पंक्तियों में पूरे वर्तमान को समाहित कर दिया

Unknown said...

बहुत सही फरमाया आपने वही बासी ख़बरें नये रूप-रंग में

Deepak Saini said...

यथार्थ से रूबरू कृति बेहतरीन रचना
बधाई स्वीकार करे

Sunil Kumar said...

सुबह की चाय की मिठास अख़बार कड़वी के देता है , अच्छी रचना बधाई

दिगम्बर नासवा said...

बासी खबर और ताज़ा चाय ... वाह ...

पुनः पधारकर अनुगृहीत करें .....