आज अपनी एक पुरानी पोस्ट की हुई एक कविता पेश कर रहा हूँ
बहुत पहले लिखी थी
शायद आपने नहीं पढ़ा होगा इसे ...
लगा था कोई,
अपना सा / हिस्सा खुद का लगा था....
देखा था उसे -भीड़ में /
नया था पर लग रहा पुराना था/
जैसे खोया था कभी पहले कहीं
अब आ मिला था ....
जैसे टूटा था कभी पहले कहीं ,
अब आ जुड़ा था
अपना ही था या दूसरा अपने जैसा,
या फिर था कोई हिस्सा किसी सपने का
पर लगा था अपना /
ताजिंदगी हिस्से रहते हैं बिखरते / टूटते / जुड़ते / मिलते / बिछुड़ते .....
टूट कर गिरे बिखरे हिस्से एक जगह नहीं मिलते
कभी या कहूँ अक्सर कहीं पर भी नहीं .....
सारे हिस्से कभी नहीं होते साथ साथ ,
कुछ अनजाने हिस्सों से भी जुड़ना होता है सफर में ...
हिस्से बटोरने और जोड़ने में
खुद बंटते जाते हैं हम हिस्सों में ,
और ढूंढते रहते हैं हिस्सा कोई अपना .....
....रजनीश
9 comments:
ताजिंदगी हिस्से रहते हैं बिखरते / टूटते / जुड़ते / मिलते / बिछुड़ते .....
टूट कर गिरे बिखरे हिस्से एक जगह नहीं मिलते
कभी या कहूँ अक्सर कहीं पर भी नहीं .....
बहुत बढ़िया सर.
सादर
bahut achcha likhe hain......
जीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
बहुत ही सुंदर, touching रचना..
टूट कर गिरे बिखरे हिस्से एक जगह नहीं मिलते
कभी या कहूँ अक्सर कहीं पर भी नहीं .....
सारे हिस्से कभी नहीं होते साथ साथ ,
कुछ अनजाने हिस्सों से भी जुड़ना होता है सफर में ...
हिस्से बटोरने और जोड़ने में
खुद बंटते जाते हैं हम हिस्सों में ,
और ढूंढते रहते हैं हिस्सा कोई अपना ... bas dhoondhte hain taumra
लगा था कोई,
अपना सा / हिस्सा खुद का लगा था....
देखा था उसे -भीड़ में /
नया था पर लग रहा पुराना था/
जैसे खोया था कभी पहले कहीं
अब आ मिला था ....
बहुत गहरी भावदशा में लिखी गयी कविता !
Beautifully written..
Lines are captivating.
हिस्से बटोरने और जोड़ने में
खुद बंटते जाते है हम और हिस्सों में,
और ढूंडते रहते है कोई हिस्सा अपना ......
बिलकुल सही कहा आपने !
बढ़िया रचना आभार आपका !
बहुत बढ़िया रचना ,
साभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
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