Sunday, June 26, 2011

बरसन लागी बदरिया

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बरसन लागी बदरिया रूम झूम के ....
( ये बोल हैं एक कजरी के, बस इसके आगे कुछ अपनी पंक्तियाँ जोड़ रहा हूँ )

बरसन लागी बदरिया रूम झूम के ...

सूरज गुम है चंद भी गुम है
नाचती है बिजुरिया झूम झूम के ....

राम भी भीगें श्याम भी भीगें
भीगे सारी नगरिया झूम झूम के

प्यास बुझी और जलन गई रे
चहके  कारी कोयलिया झूम झूम के

दुख भी बरसे सुख भी बरसे
भीगती है चदरिया झूम झूम के

हर सावन ये यूं ही बरसे
बीते सारी उमरिया झूम झूम के
....रजनीश (25.06.2011)

11 comments:

SANDEEP PANWAR said...

आज तो सच में बरसी थी

Anupama Tripathi said...

सावन का मनोहारी वर्णन ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

दुख भी बरसे सुख भी बरसे
भीगती है चदरिया झूम झूम के

बहुत सुन्दर ... भीगी भीगी सी

रश्मि प्रभा... said...

दुख भी बरसे सुख भी बरसे
भीगती है चदरिया झूम झूम के
... bahut badhiyaa

Anita said...

आपकी कविता पढ़कर मीरा का भजन याद आ गया बरसे बदरिया सावन की...बहुत सुंदर रचना!

रचना दीक्षित said...

आपकी कविता पढ़ कर तो बदरिया बरस ही गयी. बहुत सुन्दर वर्णन

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन.

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कल 28/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है-
आपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल

Dr (Miss) Sharad Singh said...

सुंदर भावों से भीगी रचना...

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

बरसती बदरिया के बीच उसका वर्णन पढना बहुतसुन्‍दर लगता है।

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विलुप्‍त हो जाएगा इंसान?
कहाँ ले जाएगी, ये लड़कों की चाहत?

विभूति" said...

bhut khubsurat barish hai...

ana said...

bhav bhini rachana

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