बरसन लागी बदरिया रूम झूम के ....
( ये बोल हैं एक कजरी के, बस इसके आगे कुछ अपनी पंक्तियाँ जोड़ रहा हूँ )
बरसन लागी बदरिया रूम झूम के ...
सूरज गुम है चंद भी गुम है
नाचती है बिजुरिया झूम झूम के ....
राम भी भीगें श्याम भी भीगें
भीगे सारी नगरिया झूम झूम के
प्यास बुझी और जलन गई रे
चहके कारी कोयलिया झूम झूम के
दुख भी बरसे सुख भी बरसे
भीगती है चदरिया झूम झूम के
हर सावन ये यूं ही बरसे
बीते सारी उमरिया झूम झूम के
....रजनीश (25.06.2011)
11 comments:
आज तो सच में बरसी थी
सावन का मनोहारी वर्णन ...
दुख भी बरसे सुख भी बरसे
भीगती है चदरिया झूम झूम के
बहुत सुन्दर ... भीगी भीगी सी
दुख भी बरसे सुख भी बरसे
भीगती है चदरिया झूम झूम के
... bahut badhiyaa
आपकी कविता पढ़कर मीरा का भजन याद आ गया बरसे बदरिया सावन की...बहुत सुंदर रचना!
आपकी कविता पढ़ कर तो बदरिया बरस ही गयी. बहुत सुन्दर वर्णन
बेहतरीन.
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कल 28/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है-
आपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल
सुंदर भावों से भीगी रचना...
बरसती बदरिया के बीच उसका वर्णन पढना बहुतसुन्दर लगता है।
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विलुप्त हो जाएगा इंसान?
कहाँ ले जाएगी, ये लड़कों की चाहत?
bhut khubsurat barish hai...
bhav bhini rachana
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