आइनों सी टाइल्स पर पड़ती
बड़े फानूसों की रोशनी में,
उसका प्रतिबिंब नज़र आया मुझे ,
लकड़ी से बनी एक डिज़ाइनर कुर्सी
पर उसे बैठे देखा था ...
एक भोली सी - कुछ अधेड़ सी लड़की...
स्वर्ग सदृश , सुवासित माहौल में,
सुमधुर संगीत
खूबसूरत दीवालों से टकराकर ,
सतरंगी रोशनियों के साथ
फैला था हर तरफ, प्रस्तुत करता एक नृत्य ...
वैभवशाली चहल-पहल में ....एक आनंदोत्सव चल रहा था ...
उस मॉल में ....
मैं मौजूद था वहाँ इसका एक-एक पल जीने...
और मेरी नजर पड़ी थी उस पर,
पर नजरें उसकी , पता नहीं कहाँ
अटकी हुई थीं,
उसके सामने धरी कॉफी टेबल तो खाली थी ,
फिर पता नहीं उसकी आंखे क्या पी रही थीं ,
वो तो हिल भी नहीं रही थी कुर्सी से ,
पर मुझे लगा की वो चल रही थी,
इधर-उधर गलियारे में ,
थिरकती हुई नृत्य भी कर रही थी...
हाथ तो खाली थे उसके और
उनमें से एक तो ठोड़ी पर ही था,
पर मुझे लग रहा था जैसे वो
तैरती रोशनी को थामने की कोशिश कर रही थी,
फिर एक शून्य भी दिखा था चेहरे पर लटका ,
तब मैं अपने घुटनों पर हाथ टिकाकर
कुछ करीब से देखने लगा था उसे ,
वो खूबसूरत लग रही थी –एक
इंसान की तरह...
शायद किसी ने सराहा नहीं उसे कभी....
आँखों में भंवर थे कुछ उसके
और चेहरे पर चस्पा थी एक हंसी -काफी बारीक सी ,
मोनालिसा की याद आ गई...
फिर थोड़ा और करीब आ गया मैं उसके
और करीब से देखने ...
न तो वो संगीत की धुन पर नाच रही थी,
न ही वो कांच की अलमारियों में
रोशनी से नहाते जेवरों को देख रही थी ,
न ही लगती थी वो जुड़ी कहीं से,
ऐसा लगा
शायद वो तो थी ही नहीं
वहाँ
क्या जरूरत है मुझे उसके
बारे में सोचने या जानने की,
मैं इसी उधेड़बुन में थोड़ा
परेशान सा होने लगा था,
इस जगमग के किसी हिस्से में
तो होगा उसका सपना
या फिर उसकी खुशी,
यही सोच रहा था,
तभी एक खूबसरत राजकुमार से
प्यारे बच्चे के साथ आई
सुंदर कपड़ों में लिपटी एक नारी
लिए ढेर सारा समान ,
यही तो वो सबकुछ था ,
जिसकी देखरेख का जिम्मा था इस लड़की पर
सम्हालने लगी जिन्हें वह लड़की,
मालकिन ने फिर एक कॉफी भी
रखवा दी उसकी टेबल पर ...
फिर कुछ समय बाद , सब कुछ उठा ,
वह
चल पड़ी ....
उसकी चाल बता रही थी
कि वो अपनी दुनिया में
वापस लौट रही थी....
उसके जाने के बाद
उस खाली पड़ी कुर्सी पर
मैं उसे बहुत देर तक देखता रहा....
.........रजनीश (26.12.10)
1 comment:
This one is more fantastic ...
written very well.
Loved it.
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