जिसके इंतजार में
मरते हैं अनगिनत बरस ,
उन कुछ पलों में
गुजर जाती है,
एक पूरी जिंदगी ।
और फिर
रह जाते है
एहसास
सँजोकर रखने ,
बटोरना हो,
तो ढूँढना पड़ता है इन्हें
और थामना होता है कसकर
नहीं तो,
चंचल होते हैं -
फिसल जाते हैं ।
ये नहीं होते विलीन
पाँच तत्वों में ,
और रह जाते हैं
कागज पर खिंची लाइन में ,
छत की मुंडेर पर ,
नहीं तो फिर
डोर पर टंगे
धूप सेंकते
................................रजनीश ( 14.12.2010)
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