धूप का स्वाद चखा है ?
नहीं ...
तुमने कभी
हवा को पढ़ा है ?
नहीं...
तुमने कभी
महसूस की है आग की ठंडक ?
नहीं ....
तुमने कभी
लहरों को देखा है, रोते ?
नहीं ...
तुमने कभी
त्रिकोण में उगते चौथे कोने से बातें की है ?
नहीं ....
तुमने कभी
बहस की है , परछाईं से?
नहीं ...
तुमने कभी
अंधेरे को हथेली पर रखा है ?
नहीं ...
तुमने कभी
किरणों को बंद किया है डब्बे में ?
नहीं ...
तुमने कभी
आंसुओं के घर में कदम रखा है?
नहीं ....
क्या कहूँ मित्र,
किस्मत वाले हो ...
फूल का पता नहीं ,
कांटे नहीं
लगेंगे तुम्हें
मजे में
कटेगी
तुम्हारी ज़िंदगी ....
....रजनीश (15.12.10)
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